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________________ - - D - - - प्रवचनसार कर्णिका किये। जिलले अपानाचार्य को रास्ता में जाते जातेला सुरभ्य नाटक देखने को मिला । शंगार रससे तरबोल (तल्लीन) बन गये। आगे चलते हुये अपाढाचार्य ने एक छोटे किशोरको अलंकारों ले सज्ज हुआ देखा । माया देखके सुनिवर भी चलित हो जाते हैं तो फिर अपाढाचार्य का तो कहना ही क्या ? उनके मना एसा आया कि इस बालक की गरदन मरोड के मार डालूं और इसके सब अलंकार ले लूं तो यहां कोई भी कहनेवाला नहीं है। पसा विचार के वालहत्या करके अलंकार उतार लिये। और फिर आगे जाने पर दूसरा एसा ही बालक देखा । उसकी भी एसी दशा कर दी। फिर रास्ते में चलते हुये अलंकारों ले सज्ज और गर्भवन्ती साध्वीजी दिखों । एसी साध्वी को देखकर ही भाचार्य गुस्से हो गये । तू साध्वी है कि कुलटा? तूने ये क्या काला किया है ? साध्वीने भी धीरे से टकोरकी कि महाराज । दूसरों को सीख देने के पहले अपनी चीज तरफ देखना चाहिये । वोलो । इस पात्रमें क्या भरा है ? आचार्य क्या बोले ? गुपचुप हो के आगे चले ! वहां रास्ते में बडे सैन्य सहित राजा रानी मिले । युद्ध करने जाते थे रास्ते में मुनिवरको देखके आनन्द को प्राप्त हुये । मुनिवरको गोचरी स्वीकारने · का खूब आग्रह किया। परंतु पात्रमें अलंकार भरे होनेसे गोचरी कैसे जा सकते थे ? खप नहीं है। एसे बहुतसे बहाने
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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