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________________ - - व्याख्यान-इक्कीसवाँ २७९ - लेकिन मुनिवर स्थिर रहे । धर्म लाभ कहके चलने लगे। इसलिये इस स्त्री को धक्का लगा। और वह सोचने लगी कि ये सुनि मेरे चरित्र के विपय में किसी को कह देगे। तो में बदनाम हो जाऊगी । इसलिवे जैसे ही उसने मुनि के पैर में झांझर वाँधदी। और खोटा . खोटा करके यानी ढोंग करके रोने लगी कि इस साधुने मेरा शील खंडित किया है। इसे पकड़ो । पकड़ो। तमाशा को तेडा कैसा ? लोग इकडे हो गये । साधुका तिरस्कार करने लगे । और कितने ही लोग तो इन निर्दोप मुनिको हैरान करने लगे। " काम वश थई आंधली - वलगी पड़ी तेणी वार - पाडया पगनी आंटी थी ... वलंग्यु झांझर त्यांय ॥ इस स्त्री का एसा दुष्ट वर्तन तथा लोगों की सतामणी होने पर भी इन मुनिवर का मन शांत था । ससभाव भरा था। - जब लोगों का टोला वहुत उश्केराट में आने लगा तव सामने ही राजमहल में रहते हुए राजा वाहर आये। और लोगों को रोका। क्योंकि उनने महल की खिड़की से खड़े खड़े इस स्त्री का चरित्र और मुनिका विदर्दोषपना देखा था । सच्ची वात की खबर होने पर लोग मुनिले क्षमा मांगने लगे । और उस युवती को धिक्कारने लगे। - इस प्रसंग की एक छाप तो रह गई। और ये - मुनि झांझरीयां मुनि तरीके प्रसिद्ध हुये।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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