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________________ व्याख्यान -सत्रहवाँ १४९ चिर गये | आँखोंमें से श्रावण भादरवां शुरू हुआ । इस रूदन के चीत्कार से राजभवन का वातावरण थंभ गया : राजभवन में रोककल ( रोना) शुरु हुआ । नगरी में यह वात जाहेर होते ही जन समुदाय के समूह के समूह अपने प्रिय. राजा के और आचार्य भगवन्त के दर्शन करने आने लगे । सम्पूर्ण राज्य में शोक जाहिर हुआ । मंत्री समझ गये कि दुष्ट वियरत्न ही आचार्य महाराज और महाराजा का खून कर के चला गया । सचमुच में । इसमें किसी गुप्तचर का काम है | तलाश के चक्र गतिमान हुये । श्मशान यात्रा का कार्यक्रम जाहेर हुआ । पूर्ण मान से दोनो महा पुरुषों की अन्तिम विधि हुई । राज्य की तमाम प्रजा की आँखों में से चौधार अश्रु. वह रहे थे । सूर्य भी वादल के पीछे छिप गया | पक्षी दूर सुदूर वनमें चले गये । राज्य में एक महीना का पूर्ण शोक जाहिर हुआ । ध्वज अर्ध कांठी फरका दिया गया । लोगों के सुख से एक ही बात सुनने मिलती थी कि विनयरत्न यह भयंकर खून कर के चला गया । जैन शासन के लिये आचार्य महाराज ने अपने प्राणी की आहुति दी. तो जैन शासन की निन्दा नहीं हुई । मनुष्य मरण पथारी ( मृत्युशय्या) पर पढ़ा हो उस समय उसकी इच्छा हो उसी प्रमाणे काम करना चाहिये जिस से उसका आत्मा आर्तव्यान ले वच जाय । मन को वश में करने के लिये स्वाध्याय करने की आज्ञा है । कर्म रूपी काष्ट को जलाने के लिये तप अग्नि समान है । जिस आदमी ने जिंदगी में खूब धर्म किया हो वह मृत्यु समय हंसते हंसते मरता है । और जिसने
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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