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________________ . HEART NAM de-- RA व्याख्यान-बारहवाँ शासन के परम उपकारी शास्त्रकार महर्षि फरमाते हैं कि सार्मिक के सगपन के समान अन्य कोई भी . सगापन नहीं है। घरमें एक आत्मा भी धर्म को प्राप्त हो तो घर के सभी मनुष्यों कों धर्म प्राप्त करा सकता है। समकिती आत्मा वीतराग देव और पंच महाव्रत धारी : साधु भगवंत सिवाय किसी दूसरे को मस्तक नमाते नहीं हैं। - वज्रकर्ण राजा को नियम था कि सुदेव-सुगुरु और: सुधर्म सिवाय दूसरे किसी को भी सिर नहीं नमाना । अपने ऊपर के राजा को किसी समय नमस्कार करने जाना : पड़े तो वहां नमस्कार किये विना चलता नहीं था। और अगर नमस्कार करे तो समकित सलीन होता था। खूव , विचारके अन्तमें एक युक्ति शोध निकाली। हाथकी अंगूठी में मुनिसुव्रतनाथ की मूर्ति रखना । जव उपरी राजा को. नमस्कार करने जाना हो तव पासमें रक्खी हुई अंगूठी. में की मूर्ति को नमस्कार करना। राजा समझेगा कि मुझे नमस्कार करता है। नमस्कार की विधि भी पल जायेगी और प्रतिज्ञा भी रह जायगी । राजा के शत्रु बहुत होते हैं। किसी शत्रुने उपरी राजा के कान भरे । महाराज, सुनो । यह तो अंगूठी में रक्खे हुये भगवान को नमस्कार करता है। जो आपको
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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