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________________ व्याख्यान-आठवाँ. - - - - - - - - - - से गीतार्थ गुरुओं ने संसार नहीं भी देखा हो फिर भी शास्त्रों के आधार से संसार का हवह वर्णन कर सकते हैं। परन्तु मर्यादित भाषा में करते हैं। ' - देवों के गले में पड़ी हुई फूलों की माला आयुष्य के छः महीना बाकी रहने पर कुसला जाती है। जिसे देख कर के समकिती देव शाश्वत तीर्थों की यात्रा, वीतराग प्रभु के दर्शन आदि करके देव भव सफल करते है। किन्तु मिथ्यात्वी देव आर्तध्यान करके महापाप बांधते हैं। .. वीतराग के धर्म की आराधना इस भव अथवा परभव' . - के सुखप्राप्ति को अनुलक्ष करके नहीं करना है किन्तु : सिर्फ मोक्ष प्राप्ति के हेतुको अनुलक्ष करके ही करना है। ... अपने शरीर के नव द्वार में से और स्त्री के बारह द्वार में से निरन्तर अशुचि वहति है । - स्वामीवात्सल्य में जीमने को आने वाले सभी को थाली धोकर के पीना चाहिये। - जीव गर्भ में आकर के सबसे पहले समय माता का रुधिर और पिता के वीर्य का आहार करता है। गर्भ में रहनेवाला बालक माता जो कवलाहार लेकर के उदय में - प्रक्षेपती है उसमें से ओजाहार करता है। गर्भ में रहने । वाले वालक को दस्त (झाडा) पेशाव आदि नहीं होते हैं। गर्भ में रहनेवाला जीव निद्रा लेता है। गर्भवती स्त्री छमास तक तपश्चर्या प्रमाण से कर सकती है। उसके बाद तप करने की मनाई है। ... वर्तमान में जितना झगड़ा, लड़ाई होती है वह मुख्यत्वे जर, जमीन और जोरू इन तीन कारणों से है।...
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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