SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६५ ) ་ रखकर उसको अमलमें लेवें, यदि ऐसा न करेंगे, तो वेसै मा बापोकों बाल बचों के हित करनेवाले नहीं मगर बेधडकसे अहितबुरा समझनेवाले ही कहेंगे. चै मावित्र नही किंतु कट्टे दुशमन ही समझो; क्यौ कि उन्होने अपने वाल बच्चोको जान बुझकर या बेदरकारीसे सद्गतिका मार्ग बंधकर दुर्गतिका मार्ग खुल्ला कर दिया हैं, उलटे रस्ते पर चडा दिये हैं; वास्ते वालकका जन्म हुवेके पेस्तर भी गर्भ में उसको हरकत न होवे उस तरह विषय सेवन संबंधम संतोषयुक्त भावापको रहना चाहिये. जन्म हुवे बाद कुछ बोलना शिख लेवे तब तक, या बाल्यावस्था तक में वो बच्चा अपशब्द न सुने या बोले नहीं. तथा सूक्ष्म जंतूको भी मारनेका न सीखे और न मारे ऐसा उपयोग देने में मावित्रोंकों बडी खबरदारी रखनी चाहियें और उसको किसी बढ़चाल चलन-चद् खिसलत वाले लोगों की सोबत न होने पावे उनकी बडी फिकर और तजवीज रखना चाहिये. जब समझके घरमें आया के तुरंत उसको अच्छे विद्यागुरु या धर्मगुरुके वहा सौंप देना चाहिये. कि जो विद्याधर्मगुरु उनको विनय वगैरः सद्गुणों का अच्छे प्रकार सह पूर्ण शिक्षण देवे. जिससे प्राप्त हुइ विद्याकी सफलतारुप वो विवेकरत्न प्राप्त कर सके. अन्यथा कुसंग कुच्छंदके योग से विनय विद्याहीन रहनेसे विवेक रहित पशु जैसी आचरणा करता हुवा जंगलके रोझकी तरह भवाटवी में भटकता फिरता है. बाललझा कुजोड- ये सब विद्या विनयादिक पानेमें बड़े हरकत रुप होते है, जिसके परिणामसे वे इस लोकके स्वार्थसे भ्रष्ट होकर परभत्रका भी साधन प्रायः नही कर सकते हैं; इतनाही नहीं लेकिन अनेक प्रकारके दुर्गुण शीखकर बडे कष्टोके भुक्तनेवाले हो जाते है; वास्ते बाल बच्चोका सुधारा करनेकी जोखमदारी भाबा
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy