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________________ (५६) गिनने चाहिए, और निर्धन तथा मृतकको समान गिनने चाहिये. १६ तमाम हुन्नरासे धर्माराधनका हुन्नर, समस्त कथाओंसे मूल्यमें धर्म कथा, सब पराक्रमसे धर्म पराक्रम, और तमाम सासारिक सुखोंसे धर्म संबंधी सुख विशेष शोभा पात्र है. . १७ जुगार खेलनेवाले जुगारीके धनका, मास खानेकी आदत चालेकी दयाधुद्धि का, मदिरा पीनेवालेके यशका और वेश्यासंगीके कुलका नाश होता है. " १८ जीवहिंसा-शीकार करनेवाले उत्तम दयाधर्मका, चोरीकी आदतथालेके शरीरका, और परस्त्रीगमन करनेवाले दयाधर्म और शरीरका नाश होता है उनकी अवममें अधमगति होती है. वास्त ए तीनो दुर्व्यसन यह लोक और परलोक इन दोनोसे विरुद्ध होने के लिये अवश्य छोड देनेके योग्य ही है. १९ निर्धन अवस्थामें दान देना, अच्छे होदेदार अफसरको क्षमा रखनी, सुखी अवस्थामें इच्छाका रोध करना, और तरुण अवस्थामें इंद्रियोंको कजमें रखनी-ये चारों बातें बहुत ही कठीन हैं; तथापि वो अवश्य करने योग्य होनेसे जब पैसा मोका हाथ लगे तब जरूर लक्ष देकर करनी ही चाहिए. धर्म कल्पवृक्ष (याने) दानके पार प्रकार, दान:-धर्म साक्षात् कल्पवृक्ष जैसा है, दान, शील, तप और भावना यह चार उनके प्रकार हैं. अभय-सुपात्र-ज्ञान दान वगेर: दानके भेद है. दानसे सौभाग्य, आरोग्य, भोग, संपत्ति ' तथा यश प्रतिष्ठा प्राप्त होते है. दानगुणसे दुश्मन भी ताबेदार हो पाणी भरता है. यावत् दानसे शालीभद्रकी तरह उत्तम प्रकारके दैवीभोग प्राप्त करके अंतमें मोक्ष सुख प्राप्त होता है. : शीलः पशुवृत्ति, छोडकर शील-सदाचारका विवेक पूर्वक
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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