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________________ (५३) प्रथम अच्छी तरांहसे अभ्यास कर पिछे तिसका पच्चलखाण करना. ९६ अभ्यासको कुच्छ असाध्य नहि है अभ्यासक बलस प्राणी पूर्णताको प्राप्त कर सकता है, इस लिये अभ्यास कियेही करना. ९७ सावधानीसे मोक्ष क्रिया साधनी शास्त्र कथन भुजब मोक्षगमन योग्य सक्रिया साधते हुवे तेल पात्रधर' (संपूर्ण तैलका पात्र लेकर चलनेवाले ) तथा 'राधावेध साधनेवाले' की तसंह सावध रहेना किंचित्भी फळत करनी नहि. विद्या मंत्रसाधककी तरांह अप्रमत्त होकर रहेना. ९८ सुख दुःखम सिंह वृत्ति भजनी धारन करनी-सुख दुःखके पत्तम हर्ष शोककी बेदरकारी रखकर कैसे कारणोसे वह सुख दुःख पैदा हुवे है, सो तपास कर अशुभ कर्मसे डरकर पलना और बने वहातक शुभ कर्म-सुकृत समाचरना. ___ ९९ श्वानवृत्ति सेवन करनी नहि जैसे कूतरा पथ्थर मारने पालेको काटना छोडकर पथ्थरको काटने दोडता है, तैसे अज्ञानी अविवेकी जनभी सुख दुःख समयमें सीधा विचार करना छोडकर उलटा विचार कर हर्ष खेद धारणकर कुत्तेकी तराह दुःखपात्र होता है. मगर जो समजदार है वो तो उभय समयमेंभी समानभाव धारण करते है. सर बोल संग्रह. १ लोभी मनुष्य फक्त लक्ष्मी इकट्ठी करने में ही तत्पर-हुंसियार रहते है, मूढ-कामी मनुष्य काम भोग सेवनमें ही तत्पर रहते हैं, तत्वज्ञानीजन काम क्रोधादि दोषका पराजय करके क्षमादि गुण धारण करने ही तत्पर रहते है, और सामान्य मनुष्य तो धर्म, और काम यह तीनोका सेवन करने ही तत्पर रहते है,
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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