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________________ (१४) विवेकशून्य पशुको तरांह अपमान पाता है यावत् बूरे हालसे मृत्यु पाकर दुर्गतिकाही भागी होता है. इस लिये क्रोधादि कषायकी सेवा करनेवालेको मनुष्य नहि मगर हैवान समझना. कट्टे दुश्मनसेभी ज्यादा खाना खराबी करनेवाले कपायही है, ऐसा समझकर कुछ हृदयमें भान लाया जाय तो अच्छा. कट्टा शलु ___ एकही भवमें दुःख दे सकता है, लेकिन यह कषाय शत्रु तो भवभवमें दुःख दे सकते है. निद्रा देवीके परवश पडे हुवे प्राणीकीभी बहोत बुरी हालत होती है, जो निद्राके ताबे न होकर निद्राकोही ताबे कर लेकर विवेक धारण करते है तिन महाशयोंको लीलाल्हेर होती है. विकथा जिस्के अंदर स्व पर हित तत्पसे संस्कारित न हुवा हो, तैसी वाहियात बात करनी सो विकथा कही जाती है. राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा, तथा भक्त- भोजन कथा यह चार विकथाओंका त्याग कर जिससे स्व पर हित अवश्य साध सके तैसी धर्म कथा कहेनी योग्य है. विकथा करनेवालेका कीमती वसत कौडीके मूल्यमें चला जाता है. और विवेकपूर्वक धर्मकथा केहेनवोलेका वस्त अमूल्य गिना जाता है; तदपि विवेक विकल लोग विकथा वर्जकर उत्तम धर्म कथासे परस्तको सार्थक करनेके वास्ते खत नहि रखते है, तो तिन्होंको आगे बहोत पस्तानाही पडेगा. और जो विवेक'पूर्वक यह हितोपदेशको हृदयमें धारणकर तिस्का परमार्थ विचारके सीधे रस्ते चलेंगे तो सर्वत्र सुखी होंगे, सच्चे सुखार्थी जन यह पापी पाचों प्रमादके फंदमें न फंसकर ‘अप्रमाद दंडसे तिन्होंका नाश करनेकलिये उक्त रहेनाही दुरस्त धारते है, अप्रमादके समान कोइभी निष्कारण निःस्वार्थी बांधव नहि. है. इस लिये पापी प्रभादोंके परका विश्वास परिहरके
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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