SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "" ( १२६ ) -थाय ते सर्व " प्रभावनाज जाणवी. भावना करतां प्रभावना अधिक छे केमके भावना तो केवळ पोतानेज लाभकारी थाय छे. त्यारे प्रभावना ते स्वपर उभयने लाभकारी थाय छे. प्रश्न ५ द्रव्य अने भाव स्तवरुप धर्म आराधना करवानी शी मर्यादा कही छे ? उत्तर—— शास्त्रमां अधिकारी परत्वे (योग्यता प्रमाणे ) धर्म साध-. वानी मर्यादा बतावी छे. एटले के गृहस्थोने द्रव्य स्तवना अधिकारी कला छे, त्यारे मुनि जनोने भाव स्तवना अधिकारी जणान्या छे. प्रश्न ६ धर्मनु संक्षिप्त लक्षण शुं छे ? अने तेनो केबो प्रभाव छे ? उत्तर -- अहिंसा, सयम अने तप लक्षणवाळो धर्म दुनियामा उत्कृष्ट मंगळरूप छे. तेमां जेनुं चित्त सदाय रम्या करे छे तेने देवताओ पण नमस्कार करे छे तो पछी बीजाओनुं तो कहेवुज शुं धर्मना प्रभावथी धम्मलादिकनी पेरे इच्छित सुखसंपदा सेहेजे सप्राप्त थाय छे. प्रश्न ७ धर्म शास्त्रनुं श्रवण करवाथी शु फळे थाय ? अने कोनी पेरे ? उत्तर शास्त्र श्रवणी धर्म कार्य करवांमा उद्यम करी शकाय, सारी बुद्धि आवे, खरा खोटानो निर्णय थाय. त्याज्या त्याज्य, भक्ष्याभक्ष्यादिकनो विवेक जागे, सवेग - शाश्वत सुख मेळवावा अभिलाषा जागे, अने उपशम - कषायनी शांति थाय. आ प्रमाणे शास्त्रश्रवण करता अनेक लाभ थाय छे, जेम रोहिणीया चोरे श्री वीर प्रभुना मुखथी एक गाथा साभळी स्वकल्याण साध्यं हतुं तेम अथवा " यवराजर्षिने आनायासे सांभळेळी त्रण गाथा गुणकारी थइ हती "ते भवसमुद्रमां वुडतां माणसाने ज्ञान जहाझ तुल्य छे तेमज मोह अंधकारने टाळवा माटे ज्ञानसूर्यमंडळ समान उपकारी थाय छे. 4.
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy