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________________ 冷冷冷冷冷冷层类 । धर्मनी दश शिक्षा १ क्षमा-अपराधी जीवोनुं अंत:करणथी पण अहित नहि इच्छता जेम स्वपरहित थई शके तेम सहनशीलता पूर्वक उचित प्रवृत्ति या निवृत्ति करवी अने जिनेश्वर प्रभुना पवित्र वचननो तेवो मर्म समजीने अथवा आत्मानो एवोज धर्म समजीने सहज सहनशीलता धारवी ते. २ मृदुता - जातिमद, कुळभद, कळमद, प्रज्ञामद, तपमद, रु५मद, लाभमद अने ऐश्वर्यमद्नु स्वरूप सारी रीते समजी तेथी थती हानिने विचारी ते संबंधी मिथ्याभिमान तजीने नम्रता याने लघुता धारण करवी. गुणगुणीनो द्रव्य भावथी विनय साचववो, तेमनी उचित सेवा चाकरी करवी तमनु अपमान करवाथी सदंतर दूर रहेवू विगरे नम्रताना नियमो ध्यानमा राखीने स्वपरनी परमार्थथी उन्नति थाय एवो सतत ख्याल राखी रहे, ते. ३ सरलता सर्व प्रकारनी भाया तजी निष्कपट थई रहेणी कहेणी एक सरखी पवित्र राखवी. जेम मन, वचन अने कायानी पवित्रता संचवाय, अन्य जनोने सत्यनी प्रतीति थाय तेम प्रयत्नथी स्व उपयोग साध्य राखीने व्यवहार करवो ते. ४ संतोष विषय तृष्णानो त्याग करी, ते माटे थता संकल्प विकल्पो शमावी दइ, तुष्ट वृत्तिने धारण करी, स्थिर चित्तथी सम्यग दर्शन ज्ञान अने चारित्ररूप रत्नत्रयीनुं सेवन कर, तेमज सर्व पाप उपाधिथी निवर्त ते. __ ५ तप मन अने इंद्रियाना विकार दूर करवा तेमज पूर्व कमनो क्षय करवा समता पूर्वक वाह्य अने अभ्यंतर तपनु सेवन कर. उपवास आदिक बाह्य तप समजीने समता पूर्वक करवाथी ज्ञान ध्यान
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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