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________________ (९७) तृष्णानो अंत आवे छे, अने संतोष गुणनी प्राप्ति अने वृद्धि थाय छे. (११३ ) संतोष सर्व सुखनु साधन होवाथी मोक्षार्थी जनोए ते अवश्य सेवन करवा योग्य छे, अने लोभ सर्व दुःखD मूळ होवाथी __ अवश्य तजया योग्य छे. लोभ-बुद्धि तजवाथी संतोष गुण वधे छे. ( ११४ ) क्रोधादि चारे कषाय, संसाररुपी महावृक्षनां डंडा मजबूत मूळ छे. संसारनो अंत करवा इच्छनार मोक्षार्थीए कषाय नोज अंत करवो युक्त छे. कपायना अंत थये छते भवनो अंत ___थयोज समजवो. (११५) उपशम भावथी क्रोधने टाळवो, विनयमावथी मानने टाळयो, सरळभावथीमाया-कपटनो नाश करवो अने संतोषथी लोभनो नाश करवो. कषायने टाळवानो एज उपाय ज्ञानीयोए बताव्यो छे. (१११६ ) राग अने द्वेषथी उक्त चारे कषायने पुष्टि मळे छे. माटे वीतराग प्रभुए सर्व कर्मनो जड जेवा राग अन द्वषनज मुळथीटाळवा वारंवार उपदेश कर्यों छे. द्वेषथी क्रोध अने मान तथा रागथी माया अने लोभनी वृद्धि थाय छे. राग-द्वेषनो क्षय थवाथी सर्व कषायनो स्वतः क्षय थइ जाय छे माटे मोक्षार्थीए राग द्वेषनो अवश्य क्षय करवो युक्त छे. (११७ ) विषय भोगनी लालसाथी राग-द्वेषनी उत्पत्ति अने वृद्धि थाय छे माटे मोक्षार्थीए विषय लालसाने तजीने सहज संतोष गुण सेववो युक्त छे. (११८ ) विविध विषयनी लालसावाळु मलीन मनज दुर्गतिनुं मूळ छे माटे एवा मननेज मारवा महाशयो भार देइने कहे छे. (११९) मनने मार्याथी इंद्रियो स्वतः मरी जाय छे. इंद्रियोना मरणथी विषयलालसानो अंत आववाथी रागद्वेषरूप कषायनो पण अंत आवे छे, रागद्वेष रूप कषायनो क्षय थवाथी घाति कर्मनो
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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