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________________ [ ६७ ] ले दर्पन संगीत को, मती कहे कछु भेद । राग रागिनी समय अरु, लछन पंचम वेद ॥ ८ ॥ इति सोमेश्वर मते राग रागिनी प्रथम प्रकास । अथ हनुमन्मते । अंत सत्रह से चालीस मे, दूज उजरी पाख । नीरा तीर लिखी यहे, कटक स्वार तहा लाख ॥ ३ ।। आजम साह महाबली, आए उन्हके साथ । भूधर करि यह पुस्तकी, दीन्ही गिरिश के हाथ ।। ४ ।। इति श्री मिश्र भूधर वैद्य राज पंडित सकलं विद्या विनोद शाकद्वीपि द्विजवर विरचित रागमंजरी पुस्तक संपूर्ण। लेखनकाल–२०१७४२ काती वदी १२बुध वीजापुर मध्ये लिखितं प्रो० विद्यापति तत्पुत्र हरिरामेण । प्रति-पत्र २७ । पंक्ति ८ । अक्षर ३२ । (अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (१०) संगीत मालिका- महमद साहि । आदि- प्रारंभ के १० पत्र नहीं होने से नहीं दिया जा सका। मध्य एक पताक त्रिपताक कहि पन कोप पुनि होए । अलि पन कह शास्त्र पुनि, संस पक्ष सुनि लोए ॥२४१।। गद्य पहिले ही पाउको फिराई स्वस्तिक वांधियहि हाथै। (फिराई स्वस्तिक बांधयहि हाथे) फिराइ स्वस्तिक कीजहि । पीछे हाथ को स्वास्तिक अरु पाऊन कौ स्वस्तिक विलगाई फिरावत वाऐ दाहिनै ले जइये पीछे हाथ पाउ वेर हूँ ऊँचे नीचे कीजहि तिहि पीछ उद्दत अणिहा उरो मंडर ए तीनिऊँ करण कीजहि तब आक्षिरे चित नाम अगहार होई। अंत. इति कल्पनृत्यं । इति श्री पेरोज साह्या वंशान्वये मानिनी मनोहरे कामिनी काम पूरन विरहनी विरह भंजन सदा वसंतानंद कंदारि गज मस्तकाकुंश श्री
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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