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________________ [६४ ] प्रति-(१) पत्र ३ । पंक्ति २७ । अक्षर १८। साईज ४४७। (२) गुटकाकार प्रति में गाथा ५६ पीछे लिखते-लिखते छोड़ दिया है। (अभय जैन ग्रन्थालय) (३) राग माला। पद्य ९०। सं० १७४६ वि०। आदि अथ गान कतुहल भाषायां राग संयोगः ।। कानरट ।। शुद्ध कानरउ आदि दे, भेद कानरे पंच । कह तिम से संगीत के, गुन जन मानस संच ।। १ ।। प्रथम कहत हों गाइ फै, शुद्ध कानरठ एक । भेद चार के गाईयइ, ताकौ सुनहू विनेक ॥ २ ॥ वागेसरी-कारठ इहाँ धनासरी दोउ मिलि अभिराम ।। एकै सुर करि गाइये चागेसरी सुनाम ।। ३ ।। अंत स्वर साधारण काकली श्रुत संगीति निवेद । बिनु स्वर महू न समझीए विस्तर तान सुभेद ॥९॥ . सर्व गाथा सलो (क) १०४ । इतिरागमाला सम्पूर्ण । लेखन-संवत् १७४६ वर्षे माह वदि कृष्ण पक्षे तिथि इग्या (र ) रस दे (दि) न वोधवारे पंडित रामचन्द गणि लीपीकृतं भटनेर मध्ये श्री रसते सोभ भवतो । श्री छ। प्रति-पत्रा २ । पंक्ति २० । अक्षर ५० । साईज १०४४।। (अभय जैन ग्रन्थालय) (५)रागमाला आदि चले कामनी कंत के, गृह सुर अरु सब मेव ।। रहनि ! रुप लक्षन कहों करो कृपा गुरु देव ।। १ ।। भैरव राग लछनं सोरठा धरे रुद्र को भेप, तीनि नैन माथे जटा । भालचंद्र की रेख, भैरव को लछन सरस ॥ २ ॥ अन्तदेसकार लछन नेन कमल मुस्त्र चंद, कुछ कठोर कंचन वरन । हरति नाह दुख दंद, देसकार सुकुमार तन ।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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