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________________ (च ) संगीत-ग्रंथ (१) रागमाला । पद्य ३८४ । उस्तत । सं० १७५८ मगसर सुदी १३ । भेहरा । आदि भरथनाद ग्रंथ ताकी सांख (१) 'नादग्राम स्वरापदा।' आदि श्लोक। सर्व संगीत विधि आद नाद ध्यावै गुणगराम को मरम पावै सातो सुर सगम पधन वृत्तंत है। चित बीच लै लागै गम कामै जोत जागै मुर्छना अ क ताल बरग अनंत है। आलस्या उघट किलक तानि निरत हमै राग रागनी सरूप बूझमै अनंत है। इंद्री भेद जानै सो सनि पिहछानै जोग सोई राग मह जान सोई कलावंत है ॥ २॥ नाद वर्णण दोहा एक आप हर रुप है, अनहद अगम भतोल । लख चौरासी मै बन्यो, जोन अनूपम बोल ॥ ३ ॥ बोलन मैं भरु पठन मै, राग कला मै सोय । जोग सबन मै नाद है, बिता नाद नहि कोइ ॥ ४ ॥ अंत जो कछु देख्यो भरथ मै, कीनो योग विचार । जो कुछ चूक परी कहूँ, सुरजन लेहू सुधार ॥ ७ ॥ नगर भेहरो वसत है, नदी सरश्वती कूल । च्यार वण चारों सुखी, धर्म कर्म को मूल ॥ ७७ ॥ उत्तर दिसि पछिम हितु, अमर कुंड तट धन्य । पट रस भोजन सोज जिह, तिनि की सैंधवारन्य ॥ ७८ ॥
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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