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________________ अंत [५१ 1 सब गुन जन सुजानसिंघ, सब रायनि के राय । कविराज सु करि कृपा, बहुरि दयो सिरपाय ॥ ७८ ॥ जिन महाराज सुजांन फै, जोरों कुंवर सुजान | कलि में दाता कर्ण सो, सूरज तेज समांन ॥ ७९ ॥ जिनके नामै ग्रन्थ यहु, करयो दास कवि जान । राज कुंवर की रीझ को, अब कवि करै बखान ॥ ८० ॥ नयन २ खंड६ सागर७ अवनि १, ऊजल आश्विन मास दसम धौंस कवि दास कहि, पूरन भयो प्रकाश ॥ इति श्रीमन्महाराज कुंवार जोरावरसिह विरचितायां वैद्यक सारे । प्रथम पुरुप मर्दी स्त्री कष्टी छूटे नाल परावर्त्ति - उपाय + + + वर्ननं नाम सप्तमो अध्याय: । ७ शुभं भवतु | कल्याण मस्तु || लेखन --- १९ वीं शताब्दी | प्रति--पत्र ३९, पंक्ति १०, अक्षर ३२, साईज ९×५ ( अनूप संस्कृत पुस्तकालय ) ( १८ ) वैद्य विनोद ( सारंगधर भाषा ) । पद्य २५२५, । रामचन्द्र | सं०१७ शु० १५ । मरोट २६ वै० भादि परधान ॥ ३ ॥ श्री सुखदायक सलहीये, ज्योति रूप जगदीस । सकत करी सोभइ सदा, श्री भगवत निशदीस ॥ १ ॥ हेमाचल ओषद करी, ज्यूं राजै भू मांह | युं उमापति राज है, प्रणम्यां आपद जांहि ॥ २ ॥ युगवर श्री जिनसिंहजी, खरतर गच्छ राजांन । शिष्य भए साके भले, पदमकीर्ति ताके विनय घणारसी, पदमरंग रामचन्द गुर देव कों, नीकै प्रणयें सारंगधर अति कठिन है, बाल न पावे ता कारण भाषा कहूँ, उपजै पहिली गुरु मुख सांभली, भाव ता पीछे भाषा करी, मेटन पंडित भाषा देखि के, करिस्यै मोकुं हासि । सारंगधर तो सुगम है, योंहि कयौं प्रकास ॥ ७ ॥ ज्ञान भेद परिज्ञान । सकल अज्ञांन ॥ ६ ॥ गुणराज । आज ॥ ४ ॥ भेद | उमेद ॥ ५ ॥
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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