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________________ [४८ ] (१५) रस मंजरी । समरथ । सं० १७६४ फाल्गुन ५ रविवार, देश आदि शिव संकर प्रणमुं सदा, उमा धरै अरधंग । जटा-मुकुट जाके प्रगट, वहत जु निरमल गंग ॥१॥ ताको दो कर जोरि के, करूं एह अरदास ।। वछित वर मोहि दीजिये, हरहु विघन परकास ॥ २ ॥ वैद्यनाथ ब्राह्मण • भयों, ताको पुत्र परसिद्ध । शालिनाथ जसु नाम है, शुचि रुचि सदा सुबुद्धि ॥ ५॥ शास्त्र अनेक विचार के, देखि वैद्य संकेत । तिसने करी रसमंजरी, सुकृति जन के हेत ॥ ६ ॥ कोविद मधुभृत बूंद के, हरे निरंतर चित्त । रस अनेक जामैं वसैं, अनुभव कीए जु नित्त ।। ७ ॥ किये शालिनाथ रस. मंजरी, संस्कृत भापा माहि। समझि न सकति मूढ़ की, व्याकुल होत है आहि ॥ ८ ॥ तातें भापा करत है, श्वेताम्बर समरस्थ । सुगम अरथ सरलता, मूरख जन के अरथ ॥ ९ ॥ मंत संवत सतेरसय चौसठि समै, ६७६७ (१) फा (गु) न मास सब-जन को रमै । पांचमि तिथि अरु आदित्यवार, रच्यो ग्रन्थ देरै मझारि ॥ ११ ॥ श्री मतिरतन गुरु परसाद, भाषा सरस करी अति साद । ताको शिष्य समरथ है नाम, तिसने करि(यह)भाषा अभिराम ॥ ४२ ॥ रस मंजरो तो रस सों भरी, पढ़ी सुनहु तुम आ [ दर करी] वनवाली को आग्रह पाइ, कीयो ग्रंथ मूरख समझाई ॥ १३ ॥ रस विद्या में निपुण जु हौइ, जस कीरति पाये बहु लोइ । जहां तहां सुख पावै सही, सो रस विद्या प्रगटावै कही ॥ ४४ ॥ इति श्वेताम्वर समर्थ विरचितायां रस मंजरी चिकित्सा छाया पुरुष लक्षण कथन दसमोध्यायः ॥ १०॥ समाप्तोयं रसमंजरी भापा ग्रंथ शुभं। लेखन-१८ वी शताब्दी। प्रति-१-पत्र ३० । पंक्ति १३ । अक्षर ४४ । साईज १०x४|| (अभय जैन ग्रन्थालय) १ पाठा० रस नाणही ।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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