SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३०] संवत सोरहसइ वरस, बीते चोतालीस । सोमतीज वैशाख को, करी कमध्वज ईस ॥ ४२ ।। वरनि सेनि वैकुंठ की, सची वेलि संसार । सुने सुनावइ जिन नसनु, प्रेम उतारइ पार ।। ४३ ।। आज्ञा मिरजांखांन की, भई करी गोपाल । वेल कहे को गुन यहइ, कृष्ण करो प्रतिपास ॥ ४४ ।। मरुभापा निरजल तजी, करि ब्रजभापा चोज । अब गुपाल यातें लहैं, सरस अनोपम मोज ॥ ४५।। कपि गुपाल यह ग्रन्थ रचि, लायो मिरजां पास । रस विलास दे ना उनि, कवि की पूरी आस । ४६ ।। इति श्रीमन् ति(नि!)खिल खांन शिरोरत्न श्रीमान् मुसाहिब खांन तनुज श्रीमन्नबाप सिरदारखांनात्मज श्रीमन्मिरजांखांन मनोविनोदार्थ पंडित लाहोरी कृतं । रसविलास समाप्त । लेखन-संवत् १७४९ वर्षे पं० प्रेमराजेन लिपी कृता श्री भुज नगरे । प्रति-अंत का आठवां पत्रांक प्राप्त । साइज १० x ४||| (अभय जैन ग्रन्थालय) (२२) सिक हुलास सूरदत्त सं० १७१६ फागुन शुक्ला ५ अमरसर । आदिआनद के कंद. जगवंद, दजुत चद सोहें, पारवती के नद हरै विपति कुमति कौं। बुधि के सदन गजवदन रदन सुभ, दुख के कदन सुख देत दै सपत्ति कौं। विघन हरन सब के भरन पोषन हो, असरन सरन सो सुमति को। श्रीपति सिवापति सिकराय सुरपति, करत प्रनाम ऐसे महा गनपति को ।। १ ।। नगर अमरसर अमरपुर, कीनो भुव । कर्तार ।। वसैं जहां चारों वरन, दाता वनिक अपार ॥ ३ राय मनोहर नृपति तह, रच्यो एक कार । सेखाउत क्छवाह मनि, पारथ को अवतार ॥ ६ ॥ मिरजाई तिह को दई, अकवर साहि सुजान । सुत सम बहु आदर करे, जानै सकल जहान ॥ ७ ॥ ताको सुत जग मे विदित कहिये प्रथिवीचंद ।। सुमिरत जाके नाम को, मिटे सकल दुख दंद ।। ८ ॥ कृष्णचन्द्र ताको तनय, मनसिज सौ अभिराम । साहि समान प्रसिद्ध जग, सुर तरवर को धाम || ९ ॥
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy