________________
(ग) अलंकार ग्रंथ
(१) अनुप्रास कथन । पद्य ३० । श्रीपति ।
आदिअथ अनुप्रास कथनं लिख्यते
अनुप्रास सो जानिये, बरन साम्य जहं होइ । छेक लाट मिश्रित कहे, तीन भांति कवि लोह ॥ १ ॥ साम्य वर्ण जहं आदि मे, वहै छेक पहिचानि । एक स्लंड पद दूसरो, अरु समस्त अनुमानि ॥ २ ॥
अंत - दामनी नचत तम जामनी सचत व्रजपति बिन कामिनी तचत पंच बांन सौं । सीपति रसिक मन डोलत बयानि सीरी बोलति है क्केल धीरी परम सयांन सौं। धूमि धूमि धावै, चूंमि झूमि झुकि भावै, अंमि मि झरि लावै छवि धुरवांन सौं । नेसुक निहारे सिखि होत है सुखारे भारे विरही दुखारे होत कारे बदरांन सौं ॥३०॥
इति अनुप्रास कथनं संपृणे । प्रति-पत्र ३ । पंक्ति १२ । अक्षर ३६, । साइज १२४ ६.
(अनूप संरकृत पुस्तकालय) (२) अनूप रमाल । उदैचद । स० १७२८ आसोज शुक्ला १० । बीकानेर । आदि
जगमणि जगसिरि जगमगत, जगत जोति जगवंद । जगत चच्छ जग जय तिलक, वंदे चद अमद ॥ १ ॥
x
विक्रमपुर पनि कर्णसुत, श्री अनूप भूपाल । राजे गाजे बाजत, रसिक सिरोमनि माल ॥ ३ ॥