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________________ तेरह मत्ता प्रथम पद, ग्यारह दुतिय करंति । तेरह ग्यारह साजि के, दोहा नाम धरंति ।। १८ ॥ सरस कला रस सो भरी, करो भीखजनु जांनि । धों नाव तिह भारथी, भाख्यो ग्रन्थ प्रधानि ॥ १९ ॥ सोलह सै पञ्चासिए, संवत इहे विचार । सेत पाखि राका तिथू, कवि दिन मास कुवार ॥ २० ॥ अंत कथी भारथी भीखजनु, हित चित करि निज लेहुँ । जहां नाम पद पूरना, तहां समशि के लेहुं ॥ २५ ॥ संख्या सब गुन दोहरा, क्रित जनु भीख सुचेन । सत्रह उपरि पांचसै, भाठों कवित्त सहेत ॥ २६ ॥ इति भारती नाममाला समाप्ता । लेखनकाल - सं० १६९१ । काती सुदी १३ । श्री मुंझुण मध्ये । वा० ज्ञान मेरु शिष्य मुनि विमला लि चि० रंगसोम पठनार्थ । प्रति-पत्र २० । पंक्ति १४ । अक्षर ४८ । (श्री जिनचारित्र सूरि संग्रह) (१०) मानमंजरी नाममाला । पद्य ११३ । बद्रीदास । आदिअथ मानमंजी लिख्यते कवित्त अमल कमल पद प्रनति, प्रथम गुरुज (न) सुभ सुंदर, दरस सरस छवि कृष्ण, सरद राकेस बदन वर । करुणा सागर सुभग जगति, कारण लीला रचि, तिन के गोकुल ग्रेह ललित, गोपिन तन सग नचि । सहसक्रित नहिं कछु, सकति बिना को पचि मरे, यथा सुमति बगी सुखद, नाम दाम प्रगटें करें ॥ १ ॥ सोरठा बहु विधि नाम निहारि, भरथ अमर जु कोप के । सरब सभाउ विचारि, मान छदावति राधिका ॥ २ ॥
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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