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________________ [ १३२ j तस्य कान नाक नेत्र मूदे। अंगुरीया तो पाछे खास मारे। मैत्रन की कोर सोलि दिखाय । सस्व पहिचाने मंडल परे सो जानिये । भन्त विश्वासी होय ज्ञाति स्वमन होइ बात सत्य कहे दुष्ट की संगति न करे निन्दक की संगति न कर ताकुं यह स्वरोदय ज्ञान दीजे । इति श्री शिव शास्त्र स्वरोदय संपूर्ण । लेखन-काल-लिखित जीवण सं० १९५७ मी आसोज वदि ११ वार बुधवासरे सहर करोली मध्ये संपूर्ण ॥ प्रति-पत्र ४ । पंक्ति १६ से २३ । अक्षर ४३ से ५५ । साइज १०४४॥ ( अभय जैन-प्रन्थालय) (२६) स्वरोदय भाषाटीका । मादि शिव कुं नमस्कार करिफै देहस्थ ज्ञान कहतु- और इडा-पिंगला माडी तिनके योग थे भावी शुभाशुभ फल-ऐसो स्वरोदय कहत है। भन्स अर्थनिश्चद वैठि के अंजलि मध्ये हे मोर भागे उंचो डारियो सब . जिनको इफल गिरे सो पूर्ण मग बूझिवै । बाथे शुभाशुभ विचार करणा । इति स्वरोदय विचार लिखितं ॥ ६ ॥ विशेष--६६ संस्कृत श्लोको का अर्थ लेखनकाल–१८ वीं शताब्दी। प्रति-पत्र ११ । पंक्ति १३ । अक्षर २६ । साइज ८४४॥ (अभय जैन-प्रन्थालय) (२७) स्वरोदय भाषाटीका । लालचन्द । सं० १७५३ भा० सुदि । अक्षयरान के लिये रचित मादि अथान्यत् संप्रवक्ष्यामि शरीरस्थ स्वरोक्ष्य । इंसचार स्वरूपेण येन ज्ञानं त्रिकालज ॥१॥ .
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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