SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १२४ संवत सतरे से बीते, वासठ उपरि जान ।। आश्विन मित तिथि पंचमी, शशि सुत वार बखान । १९२ ।। श्री पानीपंथ नगर मंझार, जिन धर्मी श्रावक सखकार ।। पुण्यवंत महा धनवन्त, दयावन्त अतिहि गुणवन्त ।। १९३ ॥ आचरहि नित प्रति पट कर्म, श्री मुख भावत पालहि धर्म । नन्दलाल नन्दन सभ कार, श्री गोवरधनदास उदार ।। १६४ ।। ताके हेत रची यह भाषा, शकुन श्रुत के लेकर शाखा । शकुन प्रदीप सु याको नाम, महा निर्मल ज्ञान को धाम ।। १९५ ।। पण्डित लक्ष्मी चन्द गुरू, ता. प्रसाद ते एह । छन्द रच्यो यह ग्रन्थ शुभ, गोवरधन दास सनेह ॥ १९६ ।। पढ़त सुनत उपजै मती, मगलीक सखकार । सकुन प्रदीप तन्त्र यह, कविजन लेहु सुधार ॥ १९ ॥ प्रति-(१)जयसलमेर भंडार (अपूर्ण)। (२) पंजाव भंडार (पूण)। (१२) सामुद्रिक । पद्य २११ । रामचन्द्र । सं० १७२२ माघ कृष्णपक्ष ६ । भेहरा। आदि-- अथ सामु (द्रि) क भाषा लिख्यते । दोहरासरसति समरूं चित्त धरि, सरस पचन दातार । नरनारी लक्षन कहुं, सामुद्रक अनुसार ॥ १ ॥ सामुद्रक ग्रन्थ मे कहे, अगम निगम की वात । इसह जांण जो नर हुवइ, ते होई जग विख्यात ।। २ ॥ आदि अन्त नर नार की, सुख दुःख वात सरूप ।। कुहं अनेक प्रकार विध, सुणो एकंत अनूप ॥ ३ ॥ प्रथम पुरूप लक्षण सुणों, मस्तक पद पर्यंत । छत्र कुंभ सम सीस जसु, ते हुवै अवनी-कंत ॥ ४ ॥ वनवारी बहु बाग प्रधान, बहै वितस्था नदी सुथान । च्यार वण तिहां चतुर सुजान, नगर भेहरा .श्री गुग प्रधान ।। पढ़े बड़े पाति साह नरिदा, जाकी सेव कर जन कंदा । पातिसाह श्री ओरन गाजी, गये गनीम दसो दिस भाजी ॥ ८९ ।। आके राज अन्य ए कीन, संस्कृत शास्त्र सुगम करि दीनै । संवत् सनर से वावीसा, माघ कृष्ण पक्ष छठि जगीस' । २० ।।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy