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________________ [ ११५ ) जै भभै गुणे तस हर्ष हुष, सदा सुख होई सुख लहस । खरतर जती है सुप्रमाण, कवि यु कहत । कल्याण ।। ६६ ।। इति श्री सिद्धाचल गजल संपुरण । लेखनकाल–१९ वीं शताब्दी। .. प्रति-टिप्पणाकार पत्र १ । पंक्ति ५४ । अक्षर २४ । साईज ९।४१७ । (अभय जैन ग्रन्थालय) (३१) सूरत गजल । यति दीपविजय । सं० १८७७ मार्गशीर्ष २। भादि दोहा परसत पद प्रणामुं सदा, प्रणमुं गुरु के पाय । गजल सूरत की गाऊंगा, श्री गुरु देव सहाय ।। - गजल सूरत शहर है सुथानाक, विएर दीपता दानाक । अलका भूमि पै आईक, कोट कोट सै पड़ खाईक ॥१॥ पूरे लोक से पूरेक, अमर वास कुं धुरेक शोभा देत है कमठाण, भट्टा पहुंचती भसमान ॥२॥ करके कृपा तप गच्छ भान, आना शेहर अपनो जाम । जाणी संघ अपनो आश, आना पूज्य जी चौमास ॥ ८१ ॥ सतोतर सतवा अठार, मिगसर मास द्वितीथासार । परण्या दीप श्री कविराज, सुरत सेहर को साम्राज ॥ २ ॥ कलश छप्पयःबंदिर सूरत सेहेर, ता बरनन इह कीनो । सब सेहरी सिरताज, सूरत सेहर नगीमो ॥ नीको सूरत सेहर लख कोशां लख चायो । देखम की नस होस सौं देखन मैं भावो ॥ श्रीगच्छ पति महाराज कुं, चित लेख लिखनै लिहा दीपविजय कविराज ने, इह सूरत सेहेर घरनन कीठ ।। ८३ ।। (प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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