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________________ [ ११० ] उदपो तले थाट उदय सूरि पादह लक्ष्मी सूरि जिम भान भाकाशें। प्रमेय रत्न समान वरनन सेवक दीपविजय इम भासे ॥ (प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय) (२१) वंगाला की गजल । यति निहाल । आदि दोहा श्री सदगुरू शारद प्रगमी, गवरी पुत्र मनाय । गजल बंगाल देश की, कहूं सरस बनाय ॥ गजल अवल देश वंगाला कि, नदियां बहुत है नालाकि । संकदी गली है वहां जोर, जंगल खूब घिरे चहुं ओर ॥ नवलख कामरू इक द्वार, दस्तक बिना नहीं पैसार । बांए हाथ बहनी गंग, दक्षिण भोर परवत तुंग ॥ रेखती यारो देश वंगाला खूब है रै जिहां पहत भागीरथी भाप गंगा । जिहां सिखरसमेत पर नाथ पारस प्रभु झाखंडी महादेव चंगा ।। नगर पचेट में रघुनाथ का बड़ा न्हाण है गंगा सागर सुसंगा। देश 8ढीसा जननाथ अरू वा कुंड के न्हात सुध होत अंगा ॥ - दोहा गजल वंगाला देश की भाषित जती निहाल । मूरख के मन मां बसै, पंडित होत खुश्याल || (प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय) (२२) भावनगर वर्णन गजल । पद्य ३२ । भक्ति विजय । सं० १८६६ कार्तिक पूर्णिमा । आदि आश्वनाथ प्रणमी करी, धरूं ध्यान शुभ ध्याय । भावनगर भेदह भणं, सहु नर नारी सुहाय ।। १ ।। भन्त गंजल गुञ्जर धरह गुण केसाक, जो ज्यो सकर पय जैसाक् । तिनकी सिफल कवि का है ताम, नव खण्ड महे तिन का नाम ||१॥ ।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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