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________________ [ ८४ ] तहिका राज महि कथा ठतारी, जहां लो बुधि परईश हमारी । जे है गये अवह के कविजन, तिन्ह गुन चुर कहै मै सब जन । उन स्यौं कछु अधिक नहीं आई, जहां तुरै तहाँ लेहु बनाई । चोरि चोरि अछर सब जोरे काठो खोर जै सवे विखोरे । शास्त्र भक्षिर वेह भानी में दीसत हे पासि लगीनी । दोहा सन हजार निवोतरै रबील आखरि मास । संवत सोलह सतपनै हम कीनी बुधि परकास । अंत कुंडलियां जो वह चाहै सो करै श्रादि पुरस करता व दोस नु किसही दीजिये । कुरे कहन कहाव कुंडल ।। कुरे कहन कहाव, पाव अन्तर गुन ज्यान्ह । लेखन काल-सं० १७५४ वर्षे फागुण मासे वृख्य तिथौ तृतीया बुधवासरे शुभं भवतु । पद्य १९५ । प्रति-पन्न ५२ । पंक्ति २१ । अक्षर १६ । साइज ६४१० । (अनूप संस्कृत लायब्रेरी) (१५) लैला मजनूं की वात । पद्य ६५९ । कवि जान । मादि प्रथम चित्त सों लीजिये, अलख अगोचर नाम । सुमिरत ही कवि नांन कहि, पूजै मनसा काम ।। १ ॥ साहिजहां जुग जुग जीवो, जिह हजरत सौं हेत। जोई ईच्छा जीव की, सोइ करता दोन ॥२६॥ भंत पेम नेम जान्यौं नहीं, ते निहचे पसु आहि । सो मानस कवि जान कहि, जिह करता की चाहि ॥५४॥ लैले मजनूं वांचिफै पैमु वढयो मन जान । __ थोरे दिन में ग्रन्थ यह, बांध्यौ वधि परवीन ||५६॥ इति लेले मजनूं ग्रन्थ कवि जान कृत संपूर्ण । लेखन काल-१८ वीं शताब्दी प्रति-गुटकाकार । पत्र ५७ । पंक्ति २१ । अक्षर १४ । साईज ६४१० । (अनूप संस्कृत पुस्तकालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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