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________________ __ श्लोक श्रीमदनूपसिंहानामाज्ञया शर्मणे कथा । रचिता शिवरामेण शिवरामो व्यलीलिखत् ॥ १ ॥ अनूपसिंहनृपः श्रवणोत्सुफैः प्रवचनेपि तथैव विचक्षणः । दशकुमारकथा वितथा भवेन्नहि यथा तथा क्रियतां चिरं ॥ २ ॥ यपं मदनो वनौ गत मदो दृष्ट्वाभवत् साम्प्रतम् । यस्पादाब्जमवेक्ष्य कच्छपकुलं नीरेंगमल्लजितम् । बुद्धि यस्य कुशाग्रभागसदृशी खेचागमद्गीप्यतिः सोयं श्रीमदनूपसिह नृपति र्जी व्याचिरं भूतले ॥ ३ ॥ सुयशोनूपसिहानाम् तेजो भूति सुखानि च । सन्तु भूपाधिपानां च दान-विज्ञान-सालिनाम् ॥ शुभमस्तु श्रीमतां । लेखनकाल–१८ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र १७६ । 'क्ति १० । अक्षर १२ । साईज ११४५।।। विशेष-दशकुमारचारित नामक संस्कृत ग्रंथ का भाषा पद्यानुवाद । (अनूप संस्कृत लायब्रेरी) (९) प्रेमविलास चौपई। जटमल । सं० १६९३ भाद्र सुदि ५ रविवार जलालपुर । आदि , दोहा प्रथम प्रणमि सरसती, गणपति गुण भंडार । सुगुर चरण अंभोज नमि, करूं 'कथा विसतार n. ॥ पोतनपुर नामा नगर, इन्द्रपुरी अवतार । कोट नदी उत्तंग गृह, वनवारी सुखकार ॥ २ ॥ अंत प्रेम विलास सु प्रेमलत, सौप सर (2) नवहयो नेह । प्रीत खरी यह जानीये, दीनों 'किनूं न छेह. ॥ ७ ॥ चौपाई . प्रेम रता की वरनी प्रीता, जटमल जुगत सकल रस रीता। सुमति सुरसती सद्गुरु दीनी, सब रस लता ६था मुहि कीनी ।। ७६ ॥
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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