SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७७ ग्रन्थपरीक्षा। उमास्वामि श्रावकाचार। (गतासे भागे।) .(२) अब, उदाहरणके तौरपर, कुछ परिवर्तित पद्य, उन पद्योंके साथ जिनको परिवर्तन करके वे बनाये गये मालूम होते है, नीचे प्रगट किये जाते हैं। इन्हें देखकर परिवर्तनादिकका अच्छा अनुभव हो सकता है। इन पोका परस्पर शब्दसौष्टव और अर्थगौरवादि सभी विषय विद्वानोंके ध्यान देने योग्य है:१-स्वभावतोऽशुचौ काये रत्नत्रयपविनिते। निर्जुगुप्सागुणप्रीतिर्मता निर्विचिकित्सिता ॥१३॥ (रत्नकरण्डश्रावकाचार) स्वभावादशुचौ देहे रत्नत्रयपवित्रिते। निघृणा च गुणप्रीतिमता निर्विचिकित्सिता ॥४॥ (उमास्वामि श्राव.) २-शानं पूजां कुलं जाति बलमृद्धि तपो वपुः। अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुगतस्मयाः ॥२५॥ (रत्नकरड श्रा०) ज्ञानं पूजां कुलं जाति वलमृद्धिं तपोवपुः। अष्टावाश्रित्यमानित्वं गतदर्पमिदं विदुः ॥५॥ (उमा० श्रा०) ३-स्वयंशुद्धस्य मार्गस्य वालाशक्तजनाश्रयाम् । वाच्यतां यत्प्रमार्जन्ति तद्वदन्त्युपगृहनम् ॥१५॥ (रत्नकरंड श्रा० ) धर्मकर्मरतेर्दैवात्प्राप्तदोषस्य जन्मिनः। वाच्यतागोपनं प्राहुरार्याः सदुपगृहनम् ॥५४॥ (उमास्वामि श्रा०)
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy