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________________ ७४ (छ) शिक्षाप्रद कवितायें (१) ' पलामोली, जैनकवि 'मुतरुरई अरायनर' कृत बुद्धिविपयक सूक्तियोंका प्रथ है जिसमें ४०० गाथायें है और प्रत्येक गाथामें किसी विख्यात सूक्तिकी व्याख्या है जो उसीके अतमें दी गई है। (२) 'आचारकोवई,' 'पेसवेपीमुल्लेर ' कृत (१०० गाथाओंका ) प्रथ है जिसमें सदाचारके नियम लिखे हैं। (३) तिरुकडकम, जो ' नलत्तागर ' कृत है। (४) सिरुपचमूलम, जो 'ममूलनर' के एक शिष्यकृत है। (५) पेलदी, जिसके कर्ता ' मदुरई मामिलसंगमफेम' के 'मकापनर' के एक शिष्य हैं, इत्यादि अन्य ग्रंथ । (ज) व्याकरण (१) 'अहापोलिलकानम, जो कि तामिलकी सबसे प्राचीन तोलकाप्पियम नामक व्याकरणके तृतीय भागका सक्षेप है। इसमें पाच अध्याय हैं और 'नरक्कवि राजनंदी' जैन कृत है। (२) पप्परुकलम, मुनिकनकसागर कृत छद और अलंकारका प्रथ है, जिसमें तीन सर्ग है और ९५ गाथायें हैं। (३) यप्पुरकल करिकई, अमृतसागर मुनि कृत पूर्वोक्त प्रथकी टीका है। (४) विराचोलियम, जो राजा वीरचोलको समर्पित एक व्याकरणका ग्रंथ है। इसके कर्ता बुद्धमित्र हैं जो संभवतः जैन थे। इसमें १५१ गाथाये है और उसीकी एक टीका भी है। इसमें वर्ण, शब्द, -वाक्य, छंद तथा अलंकारोंका वर्णन है। यह प्रथ ईस्वी सन्की ११ चीं शताब्दिके लगभग लिखा गया था, (देखो “सडामिल,', चौल्यूम १०, पृष्ठ २८७१)
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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