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________________ (ग) जीवकचिन्तामणि अर्थात् पौराणिक जीवक राजाका चरित जो एक विख्यात जैन मुनि तिरुत्तकुदेवर रचित है। इस पुस्तकमें १३ खंड अर्थात् लम्बक हैं जिनमें ३१४५ गाथायें हैं । इस संबंधमे यह बात ध्यान देने योग्य है कि इसकी कुछ गाथाओंकी ठीक ठीक छाया (बिम्ब-प्रतिबिंब) वादीभसिंहकृत (संस्कृत ) क्षत्रचूड़ामणिमें है और दोनोंमे इतनी समानता है कि यह बतलाना सर्वथा सम्भव नहीं है कि किसने किसका अनुकरण किया है । तामिल साहित्यके पंच-महाकाव्योंमें इसका स्थान प्रथम है। शेष चार काव्यों से दो काव्य अर्थात् 'वलयाति' और 'कुदलकेसी ' दो अन्य जैन लेखकोंके बनाये हुए है। मालूम होता है कि इन दोनोंमेंसे कुदलकेसीका अस्तित्व तो है नहीं और दूसरे काव्यके भी टुकड़े ही समय समय पर प्रकाशित होते रहे हैं। (घ) पांच लघु कवितायें भी (जिनको सिरु-पंचकाव्य कहते है) सब जैनियोंद्वारा रची गई हैं। (१) तोलामोलित्तेवर ( विवादमें अजेय ) कृत चूंलामणिमें २१३१ चौपाइयाँ १२ सोमें हैं और यह ग्रंथ ईसाकी दसवीं शताब्दिके आरभमें रचा गया था। मिस्टर टी. ए. गोपीनाथ एम. ए., सुपरिन्टेंडेन्ट ऑफ मार्चिऔलाजी, ट्रावनकोर, ने जो संस्कृत यशोधरकान्यकी प्रस्तावना लिखी है उसमें स्पष्टतया अपनी यह सम्मति दी है कि श्रवणबेलगोलाके मल्लिपेणके समाधिलखके श्रीवर्द्धदेव और तोलामोलित्तेवर एक ही हैं और जिस प्रथका हवाला उस लेखमें दिया है वह उसी नामका तामिल काव्य ही है। (२) यशोधरकाव्य एक अज्ञात जैन कृत है। इसमें चार सर्ग है जिनमें ३२० छंद हैं। यह पौराणिक राजा यशोधरका चरित्र है। इस १. चूलामणि कवीना चूलामणिनामसेव्यकाव्यकवि । श्रीवर्द्धदेव एव हि कृतपुण्य. कीर्तिमाहर्तुम् ॥ - -
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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