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________________ है कि उपर्युक्त नौ पदार्थों के नाम और वे शब्द भी, जो इनके अनेक विभागोंके सूचक हैं, सब सस्कृतशब्द-सग्रहसे लिए गये है। २~~इसके अतिरिक्त सत्र तीर्थंकर, जिनसे जैनियोंके विख्यात सिद्धातोंका प्रचार हुआ है, आर्य-क्षत्रिय थे । यह वात सर्वमान्य है कि आर्य-क्षत्रियोंके बोलने और विचार करनेकी भाषा सस्कृत थी। जैसे कि वेटानुयायियोंके वेद हैं इसी प्रकार जैनियोंके प्राचीन संस्कृत ग्रंथ हैं जो जैनमतके सिद्धातोसे विभूपित हैं और वर्तमानकालमें भी दक्षिण कर्नाटकमें मूडबद्रीके मंदिरोंके शास्त्रभंडारों और कुछ अन्य स्थानोमें सग्रहीत है।ये प्राचीन लेख विशेषकर भोज-पत्रों पर संस्कृत और प्राकृत भाषाओंमें हस्तलिखित हैं। प्रसिद्ध मुनिवर उमास्वातिविरचित तत्त्वार्थ-शास्त्र, जो कि जैनधर्मके तत्त्वोंसे परिपूर्ण है, सस्कृतका एक स्मारक ग्रंथ है, यह ग्रंथ महात्मा वेदव्यास कृत उत्तरमीमासाके समान है। ईस्वी सन्की द्वितीय शताब्दिके आरभमें प्रसिद्ध समतभद्रस्वामीने विख्यात गधहस्ति महाभाष्य रचा। जो कि पूर्वोक्त प्रथकी टीका है। तत्पश्चात् पूर्वोक्त दोनों प्रथोंपर औरोंने भी सस्कृतकी कई टीकायें रची । समतभद्रस्वामीने उत्तरमें पाटलीपुत्रनगरसे दक्षिणी भारतवर्षमें भ्रमण किया । यही महात्मा पहले पहल दक्षिणमें दिगम्बरसप्रदायके जैनियोंके निवास करनेमे सहायक और वृद्धिकारक होनेमें अग्रगामी हुए थे। इस संबधमें यह बात याद रखने योग्य है कि श्वेताम्बरसंप्रदायके जैनी आजकल भी दक्षिण भारतवर्षमे बहुत ही कम हैं। ३-ऐसा मालूम होता है कि बहुत प्राचीन कालसे जैनियोमें भी उपनयन ( यज्ञोपवीत-धारण) और गायत्रीका उपदेश प्रचलित है। आजकल भी जैनमदिरोंमें पूजन करनेमें और उन संस्कारों में जो
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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