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________________ भी भारतवासीको यह पारितोषिक न मिला था-भारत ही क्यों इंग्ले___ण्डमें भी अब तक केवल एक ही विद्वान् इसे प्राप्त कर सका था। रवीन्द्रबावू इस समय संसारके सर्वश्रेष्ठ महाकवि गिने जाने लगे हैं। रवीन्द्रवाबू बड़े ही उदार हैं। उन्होंने पारितोषिककी यह बड़ी रकम बोलपुरके महाविद्यालयको दे डाली है जो कि गुरुकुलके ढंगकी एक बहुत ही ऊँचे दर्जेकी सस्था है। आदर्शविवाह-जयपुरके लाला मोतीलालजी सघईके पुत्र सूर्यनारायणजीका विवाह लाला फूलचन्द्रजी गोधा वाकीवालोंकी कन्या कमलादेवीके साथ आदर्श पद्धतिसे हुआ। इस विवाहमें सव कार्य नई संशोधित पद्धतिके अनुसार हुए। पिताने विदाके समय अपनी लडकीको बहुत ही आवश्यक उपदेश दिये और उन्हें ग्रहण कर लडकीने अपनी कृतज्ञता प्रगट की। दहेजमें जेवर न देकर पुस्तकोंका एक अच्छा समूह दिया गया। और सब दस्तूरोंकों तोडकर १०१) भारतकी जैन और अजैन सस्थाओंको दान दिया गया। मारवाड़ी विद्यालय-कानपुरके मारवाड़ियोंने अभी हालही 'एक विद्यालय स्थापित किया है। सेठ विलासराय हरदत्तरायजीने इस एक पल हरदत्तरायजान इस विद्यालयके लिए ४५ हजार रुपयेका दान किया। विद्यार्थियोंकी आवश्यकता-जैन बोर्डिंगहाउस वर्धा (सी. पी.) के सैक्रेटरी प० जयचन्द्र श्रावणे सूचित करते हैं कि बोडिंग हाउसमें विद्यार्थियोंकी जरूरत है। गरीब विद्यार्थियोंको भोजनादिका खर्च दिया जाता है। समर्थ विद्यार्थियोंसे ७) मासिक लिया जाता है। नई जैनग्रन्थमाला-बम्बईसे पं० उदयलालजी काशलीवालने जैनसाहित्यसीरीज' नामकी एक ग्रन्थमाला निकालनेका प्रारभ किया है। पहला ग्रन्थ नागकुमारचरित तैयार है। जैनीभाइयोंको ग्रन्थमालाके स्थायी ग्राहक बन जाना चाहिए।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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