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________________ ' आजकल ब्रह्मचर्यपालन करानेके बदले नीतिपाठ पढ़ानेकी पद्धति निकली है । देशके सुशिक्षित नेता और बालकोंके मातापिता समझते हैं कि छात्रोंको नीतिका उपदेश देना बहुत ही जरूरी है। परन्तु हमारी समझमें यह भी एक तरहका कल या मशीन जैसा काम है। प्रतिदिन नियमपूर्वक थोडासा 'सालसा' पीलेनके समान ही यह नीतिउपदेश है। मानो बच्चोंको अच्छा बनानेका यह एक निर्दिष्ट उपाय नीतिका उपदेश यह एक विरोधी विषय है । यह किसी भी तरह मनोहर नहीं हो सकता। क्योंकि जिसको उपदेश दिया जाता है वह मानो आसामियोंके कठघरेमें खड़ा किया जाता है और ऐसी अवस्थामें या तो वह उपदेश उसका मस्तक लाँधकर चला जाता है या उस पर चोट करता है। इससे केवल हमारा यह प्रयत्न ही निष्फल नहीं होता है बल्कि कभी कभी इससे उलटा अनिष्ट हो जाता है। अच्छी बातको विरस और विफल कर डालना, इसके समान हानिकर कार्य मनुष्यसमाजके लिए और दूसरा नहीं है। नीत्युपदेश जैसी अच्छी बात, बच्चोंको बिना जरूरत और बिना समय देनेका प्रयत्न कर विरस और विफल बना डाली जाती है । परन्तु लोग इस विषथको समझते नहीं; अच्छे अच्छे सुशिक्षितोंका झुकाव भी इस ओर अधिकतासे देखकर मनमें बड़ी आशङ्का होती है। ___ जहाँ इस कृत्रिम जीवनयात्रामें हजारों तरहके असत्य और विकार हर घड़ी हमारी रुचिको नष्ट किया करते है, वहाँ यह आशा कैसे की जा सकती है कि स्कूलके दशसे लेकर चार बजे तकके थोड़ेसे समयमें एक दो पोषियोंके वचन हमारा संशोधन कर डालेंगे-हमारे चरित्रको नीतिपूर्ण बनाये रक्खेंगे। इससे और तो कुछ नहीं होता-केवल वहा
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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