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________________ ३२० नामक तीन शिष्योंपर और जोरावरसिंह नामक एक और युवकपर नीमेज जिला शाहबादके महन्त और उसके एक सेवककी हत्या करनेका अपराध लगाया गया है। मुकद्दमा आरामें चल रहा है।माणिकचन्द सरकारी गवाह बन गया है। उसने स्वय अपने साथियों सहित हत्या करना स्वीकार किया है । और भी कई साक्षियोंसे हत्या करना सिद्ध हुआ है। हत्या महन्तकी सम्पत्ति लेनेके लिए की गई थी । जो सम्पत्ति मिलती वह देशसेवाके काममें खर्च की जाती। परन्तु अपराधी तिजोरी न तोड़ सके और भयके मारे भाग गये । सेठीजी इस हत्यामें शामिल नहीं बतलाये जाते है, परन्तु पुलिसको विश्वास है कि उनकी भी इसमें साजिश है । कुछ ऐसे सुबूत भी मिले हैं जिससे अनुमान होता है कि सेठीजीने एक राजद्रोह प्रचारक समिति बना रक्खी थी और उसका सम्बन्ध दिल्लीके पडयन्त्र करनेवालासे था। अपराधियोंमेंसे जयचन्द और जोरावरसिंह लापता हैं। शिवनारायण द्विवेदी जो बम्बईमें गिरिफ्तार किया गया था, उसके द्वारा पुलिसको इस सारे पडयन्त्रका पता लगा है। इस समाचारको पढ़कर हम लोगोंके आश्चर्यका कुछ ठिकाना नहीं रहा है। क्या जैनियोके द्वारा भी ऐसे घोर पातक हो सकते है ग्रन्थ लिखाइए-आराके जैन सिद्धान्तभवनमें इस समय कई सुलेखक मौजूद हैं । भवनके साचित प्रन्योमेंसे यदि कोई भाई अन्य लिखवाना चाहें तो मत्रीसे शीघ्र ही पत्रव्यवहार करें। मुंशीजीका देहान्त-गत ता० ८ मईको महासभाके महामत्री मुशी चम्पतरायजीका देहान्त हो गया । यह बड़े ही शोकका विषय है । आप कई महीनेसे बीमार थे।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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