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________________ ३३ अध्यापनकी सजीवता मिल सके; पोथियोंकी शिक्षा देना और हृदय तथा मनोंको गढ़ना ये दोनों ही भार विद्यालय ग्रहण कर लें। हमको देखना होगा कि हमारे देशमें विद्यालयोंके साथ विद्यालयोंके चारों ओरका जो विच्छेद या विरोध है उससे छात्रोंका मन विक्षिप्त न हो जाय और इस प्रकारकी विद्याशिक्षा केवल दिनके कुछ घण्टोंके लिए बिलकुल स्वतन्त्र होकर, वास्तविकतासे रहित एक अत्यन्त कठिनाईसे हजम होनेवाली चीज न बन जाय । विलायतमें विद्यालयोंके साथ घर या बोर्डिंग स्कूल रहते हैं । हमारे यहाँ भी इनकी नकल होने लगी है। परन्तु इस प्रकारके बोर्डिंगस्कूलोंको एक तरहकी वारके, पागलखाने, अस्पताल या जेलखाने ही समझने चाहिए। ___ अतएव विलायतके दृष्टान्तोंसे हमारा काम न चलेगा-उन्हें छोड़ ही देना पड़ेगा। कारण विलायतका इतिहास और विलायतका समाज हमारा नहीं है--हममें और उसमें बहुत प्रभेद है। हमारे देशके लोगोंके मनको कौनसा आदर्श बहुत समयसे मुग्ध कर रहा है और हमारे देशके हृदयमें रस-सञ्चार कैसे होगा, यह हमें अच्छी तरह समझ लेना होगा। परन्तु यह हम समझ नहीं सकते। क्योंकि हमने अँगरेजी स्कूलोंमें पढ़ा है। हम जिस ओर देखते हैं उसी ओर अँगरेजोका दृष्टान्त हमारे नेत्रोंके सामने प्रत्यक्ष हो जाता है। और इसकी ओटमें, हमारे देशका इतिहास हमारी स्वजातिका हृदय छुप जाता है-स्पष्ट नहीं रहता । हम नेशनल पुताकाको ऊँची उठाकर स्वाधीन चेष्टासे काम करेंगे, इस खयालसे जब हम कमर कसके तैयार होते है, तब भी विलायतकी बेडी कमरबन्द बनकर हमें बाँध लेती है और हमें नजीर या दृष्टान्तसे बाहर हिलने डुलने नहीं देती।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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