SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कि हमारी संख्या थोडी होनेपर भी हममे आपसमे ऐक्य नहीं है। तुमने कभी विचार नहीं किया कि हम किस ओर जा रहे है। यही कारण है कि हम निर्जीव हैं। पर अब हम निर्जीव नहीं रहेगे: आये हैं तेरे दर पै तो कुछ करके उठेंगे। या वस्ल ही होगा या अब मरके उठेंगे। -देवदूत। शिक्षा-समस्या। हम स्कूलोंको एक प्रकारकी शिक्षा देनेकी मशीनें या कलें समझते हैं। मास्टर लोग इस कारखानेके एक तरहके पुरजे हैं। साढ़े दश बजे घण्टा बजाकर कारखाना खुलता है और कलका चलना आरम्भ हो जाता है। मास्टरोंके मुंह भी चलने लगते है। चार बजे कारखाना बन्द होता है, मास्टररूपी पुरजे भी अपने मुंह बन्द कर लेते है। तव विद्यार्थी इन पुरजोंकी काटी-छाँटी हुई दो चार पन्नोंकी विद्या लेकर अपने अपने घर लौट आते हैं। इसके बाद परीक्षाके समय इसविद्याकी जॉच होती है और उसपर मार्क लगा दिये जाते हैं। कलों या मशीनोंमें एक बडी भारी खूबी यह रहती है कि जिस मापकी और जिस ढंगकी चीजकी फरमायश की जाती है ठीक उसी माप और ढंगकी चीज तैयार हो जाती है। एक कलसे तैयार हुई सामग्रीमें और दूसरी कलसे तैयार हुई सामग्रीमें कोई बड़ा फर्क नहीं पडता और इससे मार्क लगानेमें बड़ा सुभीता होता है। किन्तु एक मनुष्यके साथ दूसरे मनुष्यका मिलान नहीं हो सकतादोनोंमें बड़ा अन्तर रहता है, यहाँ तक कि एक ही मनुष्यके एक दिनके साथ उसीके दूसरे दिनकी समानता नहीं देखती जाती।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy