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________________ २७६ अपने मनोबलको दृढ करो जिससे अनन्त जीवन, महान् पराक्रम और प्रभाव आदिसे तुम्हारी मित्रता हो। ७ जैन पत्रोंकी आर्थिक अवस्था । जैनसमाजको इस और विशेष ध्यान देना चाहिए कि उसके साप्ताहिक पाक्षिक या मासिक किसी भी पत्रकी आर्थिक अवस्था अच्छी नहीं है । ऐसा एक भी पत्र नहीं है जो मुनाफेके लिए निकाला जाता हो अथवा जिसने कुछ मुनाफ़ा उठाया हो। आप चाहे जिस पत्रका वार्पिक हिसाब मॅगाकर देख लीजिए वह बराबर घाटेमे ही उतरता हुआ मिलेगा। इसी घाटेके कारण अनेक पत्र बन्द हो जाते है और आगे उनसे जो लाभ होता उससे समाजको वचित रहता पड़ता है। जो पत्र उनके संचालकोके साहस अध्यवसाय और प्रयत्नसे घाटा सहकर भी किसी तरह चल रहे है उनकी अवस्थामें भी जितनी उन्नति होना चाहिए उतनी नहीं होती। हो भी नहीं सकती । क्योंकि अच्छे उपयागी लेखोंके लिखने और सग्रह करनेके लिए, पत्रका आंकार सौन्दर्य बढानेके लिए, चित्रादि प्रकाशित करनेके लिए, समयपर प्रकाशित करनेके लिए और उत्तम व्यवस्था रखनेके लिए रुपयोंकी जरूरत होती है और यथेष्ट रुपया तब हो जब ग्राहकोकी संख्या अधिक हो । परन्तु ग्राहक मिलते नहीं और ऐसी दशामें ये पत्र किसी तरह रोते झींकते हुए चलाये जाते हैं। न उनमें ताजे और विश्वस्त समाचार रहते हैं, न उच्चश्रेणीक प्रगतिकारक लेख रहते है, न मनोरंजनके साथ साथ शिक्षाकी सामग्री रहती है, न धर्म और समाजकी अवस्थाकी गभीर आलोचना रहती है और न साहित्यकी चर्चा होती है। फल इसका यह हुआ है कि समाजमे ज्ञानकी वृद्धि और नये विचारोंकी वाढ बन्द हो रही है। उत्तेजन और कार्यक्षेत्रके अभावसे न तो लेखक
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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