SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७३ क्षय होना रोका जा सकता है। आयुके क्षय करनेवाले कारणोंको हम नहीं जानते अथवा जाननेपर भी उन्मत्तइन्द्रियोंके अधीन होकर उनकी परवा नहीं करते, इसी लिए हम अमरत्वकी प्राप्ति नहीं कर सकते । इस देशमें पहले ऐसे अनेक महात्मा हो गये हैं जिन्होने मृत्युपर विजय प्राप्त की थी। दीर्घायु प्राप्त करनेवालोंके तो सैकडो दृष्टान्त अब भी मिलते है। इसके बाद वैद्यजीने १०० वर्षसे लेकर २०७ वर्ष तककी आयुवाले देशी और विदेशी १५ स्त्री पुरुपोंके विश्वसनीय उदाहरण देकर दीर्घायुष्यकी आवश्यकता बतलाते हुए उसकी प्राप्तिके उपाय वर्णन किये है। वे उपाय सक्षेपमें ये हैं:१ब्रह्मचर्य-दीर्घायुष्यसे इसका बहुत बड़ा सम्बन्ध है। अष्टांग ब्रह्मचर्य (दर्शन, स्पर्शन, भाषण, विषयकथा, चिन्तन और क्रीडा आदि) जितना ही अधिक कालतक पाला जायगा, जीवन उतना ही अधिक चिरस्थायी होगा। यदि जीवनपयंत ब्रह्मचर्य पालन न किया नासके, तो कमसे कम विवाहित जीवन धारण करके इन्द्रियनिग्रहका अभ्यास अवश्य करते रहना चाहिए । सुश्रुतके मतसे ४० वर्षकी अवस्थातक समस्त धातुओंकी पुष्टि होती रहती है तथा ४८ वर्षमें सांगोपाग शरीरकी समस्त धातुयें सम्पूर्णताको प्राप्त हो जाती है। प्राणीविज्ञानशास्त्रने सिद्ध किया है कि दूध पीनेवाले (mammalia) प्राणियोंकी शरीररचनाका क्रम पूर्ण होनेमें जितना समय व्यतीत होता है उससे पाँचगुणी उनकी आयु होती है । इस नियमके अनुसार जो ४८ वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य पालन करेगा और आरोग्यशास्त्रके नियमोंके अनुकूल चलेगा, वह अवश्य ही २४० वर्षकी. आयु प्राप्त कर सकेगा। इसी तरह ४० वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालन करनेवाला .२०० वर्ष तक और २५ वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालनेवाला १२५ वर्षकी
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy