SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ २. पूजानिय पण्डितोंकी पदवियाँ । पदवियों के विषयमें हम पिछले द्वितीय अकमें एक नोट लिख चुके है। उससे पाठकोंने खयाल किया होगा कि यह पदवियोंका रोग श्रावक या गृहस्थोंमें ही प्रविष्ट हुआ है; परन्तु सहयोगी जैनहितेच्छुसे मालूम हुआ कि अब जैनसाधुओं पर भी इसने आक्रमण किया है। अभी कुछ ही दिन पहले पैथापुर नामक एक ग्राममें श्रीबुद्धिसागर नामक श्वेताम्बर साधु 'शास्त्रविशारद जैनाचार्य' की पदवीसे विभूषित किये गये हैं। लगभग दो वर्ष पहले उक्त साधुमहाराज जब बम्बईमें थे, तब ही उन्हें यह पदवी दी जानेका प्रयत्न किया गया था, परन्तु सुनते हैं कि उस समय मुनिमहाराजने पदवी लेनेसे इंकार कर दिया था और इसका कारण यह था कि आपके सस्कृतशिक्षक प० श्यामसुन्दराचार्यने काशीके पण्डितोंसे पदवी दिलानेके लिए जो यत्न किया था, किसीने उसकी पोल खोल दी थी। परन्तु अब उसे लोग भूल गये होंगे और कमसे कम एक ग्रामके लोग तो उससे अपरिचित ही होंगे, शायद इसी विश्वाससे महाराजने इस समय उक्त पदवी ग्रहण कर ली। इसमें सन्देह नही कि काशीके ब्राह्मण पण्डित पदवियोंके देने में बहुत ही उदार है और भक्ति तथा पूजासे इन देवताओंको प्रसन्न करना बहुत ही साधारण बात है; परन्तु जैनधर्मके अनुयायियोंके लिए यह विषय बहुत ही विचारणीय है कि वे इन पूजाप्रिय पण्डितोंकी दी हुई पदवियोंके भारसे नीचे गिरेगे या ऊपर उठेंगे। इस नोटके लिख चुकनेपर हमने सुना कि काशी स्याद्वादविद्यालयके अधिष्ठाता बाबू नन्दकिशोरजीको अभी थोड़े दिन पहले जो 'विद्यावारिधि की पदवी प्राप्त हुई है वह भी काशीके पण्डितोंकी
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy