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________________ २५७ समझमें आसकता है कि उनमें कितनी ऐतिहासिक सामग्री मौजूद है । भारतवर्ष में प्राचीन इतिहासकी पुस्तकोका अभाव होनेसे इन ले. खोंसे बड़ी सहायता मिली है। इतना ही नहीं किन्तु बहुत सी बाते तो हमें केवल इन्हींके द्वारा मालूम हुई है । प्राचीन इतिहासका कालक्रम अधिकतर इन्हींके द्वारा निर्णय हुआ है क्योंकि इनमे राजाओंके नाम और संवत् लिखे है । पुराणोमे बहुतसी अशुद्धियाँ और मतभेद होनेके अतिरिक्त कालक्रम भी नहीं है और कहीं कहीं है भी, तो उसमें बड़ी भारी अशुद्धियाँ रह गई है । डाक्टर प्लीटने ऐसी अशुद्धिका एक बड़ा अच्छा उदाहरण दिया है। वे लिखते है कि पुराणोके कर्ताओंने समकालीन वंशो और राजाओको एक दूसरेके बाद मान कर उनके कालमें बड़ी गडबडी कर दी है। पुराणोमें मौर्यवंशके आरंभसे यवनोंके अंत तकका मध्यवर्ती काल २५०० वर्षसे अधिक दिया है । यह मालूम है कि मौर्यवंशका आरंभ ईसवी सन्से ३२० वर्ष पूर्व हुआ । इसमे यदि पुराणोंके २५०० वर्ष जोड़ दिये जावे तो यवनोंके राज्यका अंत लगभग २२०० ईसवी सन्मे अर्थात् आजसे लगभग तीन शताब्दिके पश्चात् निकलता है। पुनः पुराणोंमे यह भी लिखा है कि यवनोंके बाद गुप्तवंशीय राजा और कई अन्य राजा हुए; यदि उपर्युक्त सन्मे 'इन सबका भी राजखकाल जोड़ दिया जाय तो वर्तमानकालसे कई शताब्दि आगे निकल जायगा !! जब तक इतिहासमें कालक्रम न हो तब तक उसे इतिहास नहीं कह सकते । इन लेखोंके द्वारा हज़ारों ही ऐतिहासिक बाते मालूम हुई है। यहाँ पर उनका वर्णन नहीं हो सकता। नीचे केवल दो उदाहरण दिये जाते है; एकसे एक पौराणिक त्रुटि दूर हुई है और दूसरेसे एक सर्वसाधारणमें प्रसिद्ध बात भ्रातिजनक सिद्ध हुई है।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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