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________________ २४७ दूसरी ओर आपकी सहकारितापर भरोसा रखते हुए आसन ग्रहण करता हूँ। __ जैनधर्मपर कोई लम्बा चौड़ा विवेचन करनेका न यह समय है और न यह स्थान । साथ ही मैं आपको यह भी विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इस प्रसिद्ध जैनसमाजको उसके ही मत और सिद्धान्तकी कोई बात सिखलानेका साहस नहीं करता हूँ। ऐसा करना, सज्जनो, उलटे बॉस बरेली ले जानेके समान होगा। परन्तु एक ऐसे व्यक्तिके मुखसे जो, यद्यपि सम्प्रदायसे जैनी नहीं है तथापि, जैनधर्मका अभ्यासी रह चुका है, एक दो शब्दोंका निकलना कुछ अनुचित भी न होगा। मालम होता है कि ईसामसीहसे लगभग छह सौ वर्ष पहले इस सारे भूमंडलपर मानसिक जागृति और कर्तव्यपरायणता उत्पन्न हुई थी। उस समय एक नई परिपाटीका जन्म होना पाया जाता है, पूर्वीय और पश्चिमीय दोनों ही देशोंमें एक नया युग प्रवर्तित हुआ था। ____ योरुपमें, पैथेगोरस नामके प्रसिद्ध यूनानी फिलासोफ़रने ससारको एकताका सिद्धान्त सिखलाया। एशियामें, चीनके कनफ्यूशस और ईरानके जोरोस्टरने इस जागृतिमें हिस्सा लिया । प्रथमने अपनी उन शिक्षाओंके द्वारा जिन्हें 'गोल्डनरूल' (Golden rule) कहते है और दूसरेने अपने उस सिद्धान्तके द्वारा जो आरमुज्ड (Armugd) और अहिरिमन (Ahiriman) अर्थात् प्रकाश और अंधकारकी शक्तियोंके विसम्वादके सम्बन्धमें है, यह कार्य किया। हिदुस्तानमें महावीरने, जिन्हें वर्धमान भी कहते है और जो इस चर्तमान कालमें जैनियोंके अन्तिम तीर्थकर हुए हैं, अपने आत्म-संयमके सिद्धान्तको प्रकाशित किया और बौद्धधर्मके प्रवर्तक बुद्धदेवने अंधकार और दुःखमें पड़े हुए जगतको ज्ञानोद्दीपनके संदेशसे उद्घोषित किया।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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