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________________ २३८ या राष्ट्रीयतासे मानो उनका कुछ सम्बन्ध ही नहीं है । यही सब देखकर पूछनेकी इच्छा होती है कि जैनी क्या सबसे जुदा रहेंगे? भारतवर्ष एक बहुत बड़ा देश है । यहाँ सैकड़ों धर्मो पन्थों और मतोंके माननेवाले रहते हैं। एक समय था जब इन धर्मानुयायियोंक परस्पर लड़ते झगडते रहनेपर भी समूचे देशको कुछ हानि लाम न उठाना पड़ता था | क्योंकि उस समयके भारतका गठन ही कुछ और ही प्रकारका था । देशकी रक्षा या हानिलाभसे उस समयकी साधारण प्रजाका कोई सम्बन्ध नहीं था; शासक या राजा लोगों पर ही इसका दायित्व था। इसी कारण उस समय यह एक सर्व साधारण कहावत थी कि "कोउ नृप होहु हमें का हानी, चरी छोड न होउब रानी ।" और लोग अपनी या अपने समूहकी ही बढ़तीकी ओर दृष्टि रखते थे । परन्तु वह समय अब नहीं रहा । इस समय भारत पराधीन है। एक विदेशी जाति इसका शासन कर रही है और वह उन जातियोंमें से एक है जो किसी एक राजाके एकहत्थी शासनको बहुत बुरा समझती है और उसमें सर्व साधारणकी सम्मतिकी आवश्यकता स्वीकार करती है । वह स्वयं इस बातको 'डककी चोट ' प्रचार करती है कि हम भारतका शासन भारतवासियोंकी सम्मतिसे करेंगे । गरज यह कि इस समयकी परिस्थितिने यह बात बहुत ही आवश्यक कर दी है कि यहाँकी सर्व साधारण प्रजा भी देशकी भलाई बुराईका विचार करे और आपको उसकी उत्तरदात्री समझे । और यह है भी ठीक । क्योंकि जब तक शासकोंको हमारे सुखदुखोंका ज्ञान न होगा, हमारी आवश्यकताओंको और हिताहितको चे न समझेंगे तब तक उनका शासन हमारे लिए कभी अच्छा नहीं हो सकता । हमारे शासक विदेशी हैं, वे हमारे सामाजिक धार्मिक
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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