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________________ ग्वालियरके किलेकी जैनमूर्तियाँ। ग्वालियरका किला बहुत पुराना है | यह बात इतिहासोंको देखने से स्पष्ट हो जाती है। यह सभव है कि उसके बनानेवालेका पता आजतक न चला हो और उसके बनाए जानेकी बाबत जो रवायतें मशहूर हो रही हैं उनमें भले ही इख्तलाफ हो; मगर इस बातको आम तौरपर सब इतिहासज्ञ स्वीकार करते है कि यह किला बहुत प्राचीन है। किलेकी बुनियाद हिन्दू राजाओंने डाली यह भी ठीक है। कछवाहे और परिहार राजपूतोने बहुत समय तक इस किलेको अपने अधिकारमें रखकर इस प्रान्तका राज्य किया । राजपूतोंके अलावा जैनलोगोंके कब्जेमे भी यह किला बहुत दिनोंतक रहा। किलेपर जो जैन मूर्तियाँ हैं वे जैनधर्मकी दृष्टिसे जितने महत्त्वकी है उतने ही महत्त्वकी चे चित्रनिर्माणशास्त्रकी दृष्टिसे भी हैं। उनको देखनेसे प्राचीन समयकी उत्तम कारीगरीका अपूर्व उदाहरण हमें दिखाई पडने लगता है। ग्वालियरके अलावा हिन्दुस्थानमें इसी प्रकारकी अपूर्व मूर्तियाँ एलोरा, एलिफेंटा और एजंटामें देखी जाती है और उनकी कारीगरीकी, आजकलके विदेशी गृहनिर्माणशास्त्रवेत्ता लोग मुक्तकठसे प्रशसा करते हैं। परन्तु उन स्थानकी मूर्तियोंसे ग्वालियरके किलेकी मूर्तियोंमें विशेपता है। क्योंकि ग्वालियर दिगम्बरी जैनियोका प्राचीन समयसे विद्यापीठ रहा है। किलेके अन्दर जैनियोके पूजनीय देव पार्श्वनाथका एक छोटासा मन्दिर भी मौजूद है। अलावा इसके अन्य जैनमन्दिरोंके चिह्न भी अब तक पाये जाते हैं। जहाँ तक पता चला है उससे जाना जाता है कि बारहवीं शताब्दीमें जैनियोंका इस किलेपर पूरा अधिकार था।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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