SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह हमें याद रखना चाहिए कि जबतक हमारा नये उत्थानका सदेशा लोगोंके कानोंतक इस जोरसे न पहुँचेगा कि उनकी झिल्लियाँ फटने लगें और वे सुनते सुनते ऊब जावे, तवतक उनमें विचारसहिष्णुता नहीं आ सकती-उन्हें सुननेका अभ्यास नहीं हो सकता और तव तक कोई भी नये सुधारके होनेकी आशा नहीं की जा सकती। इस खयालसे कि जव ये समझने लगेंगे तब हम कुछ सुनावगे हमें सैकडॉ वर्ष तक भी सुनानेका अवसर नहीं मिलेगा। सफलता की कुजी यही है कि हम उद्योग करते रहें-कर्तव्य करते रहें और विनवाधाओंकी और भ्रूक्षेप भी न करें। ३ जैन हाईस्कूल क्यों न खुला? पाठकोंको मालूम है कि जयपुरनिवासी पं० अर्जुनलालजी सेठी बी ए को हाईस्कूलकी प्रवन्धकारिणी कमेटीने इस लिए चुनकर इन्दौर बुला लिया था कि वे जैन हाईस्कूलके प्रिंसिपाल वनकर कार्य करें। सेठीजी लगभग १० वर्षसे शिक्षाप्रचार सम्वन्धी कार्य कर रहे हैं। शिक्षापद्धति और शिक्षासस्थाओंके विषयमें उन्होंने बहुत उच्च श्रेणीका ज्ञान और अनुभव प्राप्त किया है। इस विषयमें वे जैन समाजमें अद्वितीय हैं। धार्मिक ज्ञान भी उनका वहुत बढा चढा है । इन वातोंपर ध्यान देनेसे कहना पड़ता है कि प्रवन्धकारिणी कमेटीने उनके चुननेमें बहुत बडी योग्यताका परिचय दिया था और सेंठीजीके द्वारा उसका हाईस्कूल भारतवर्षका एक आदर्श हाईस्कूल बन जाता, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है। परन्तु ‘यचेतसापि न कृत तदिहाभ्युपैति' जो कभी सोचा भी नही था वह हो गया, हमारे दुभाग्यसे सेठीजीपर एकभयकर विपत्ति आकर टूट पड़ी जिससे उत्सवके समय हाईस्कूल खुल न सका और यदि हमारा अनुमान सत्य हो तो जैन हाईस्कूल सदाके लिए एक उत्साही स्वार्थत्यागी सचालकसे वाचत हो गया। जहाँ तक हम जानते हैं सेठीजी आज तक कभी किसी राजनैतिक आन्दोलनमें शामिल नहीं हुए है। वे शान्तिप्रिय और राजभक्त जैनजातिके केवल एक धार्मिक और सामाजिक शिक्षक थे। उन्होंने शिक्षाप्रचारका जो बडा भारी भार उठा रक्खा था उसको छोड़कर और किसी काममें हाथ डालनेके लिए उनके पास समय भी न था। परन्तु आज कल देशकी दशा ही कुछ ऐसी हो रही है कि राजनीतिक मामलोंसे दूर रहनेवाले लोग भी सुखकी नींद नहीं सोने पाते । यह सुनकर सारा जैनसमाज दहल उठा कि ता० ८ मार्चको सेठीजी और उनके शिष्य कृष्णलालजीको पुलिस गिरिफ्तार कर ले गई। वीचमें जव यह सुना कि
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy