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________________ सन्तान हो उन्हींके नाम पर धब्बा लगा रहे हो? क्या तुम ऐसी अवस्थासे संतुष्ट हो? . प्रिय भ्राताओ, जरा दृष्टि पसार कर देखो तो सही, कि तुम्हें सर्व साधारण क्या कह रहे हैं; तुम्हारे उत्कृष्ठ धर्मके विषयमे कैसी कैसी किम्बदन्तियाँ प्रचलित हैं ? तुम्हारी हीनावस्थाके कारण तुम्हारे विषयमें सर्व साधारणका कैसा मिथ्या ज्ञान हो रहा है ? तुम्हारे ऊपर कैसे कैसे आक्षेप हो रहे है किन्तु तुम्हारे कानों पर जूं तक नहीं रेगती । जब तक तुम बड़े जोरके साथ इन आक्षेपोका निवारण न करोगे तब तक याद रखो कि तुम जैनधर्मका महत्त्व सर्व साधारण पर प्रकट करनेमें असमर्थ रहोगे और अतएव तुम्हारे भाई स्वात्मकल्याण और वास्तविक सुखसे वञ्चित रहेगे। यदि तुम विचार करके देखो तो तुमको ज्ञात होगा कि ये आक्षेप दो प्रकारके है; एक तो तात्त्विक जो जैनधर्मके तत्त्वों अथवा सिद्धान्तोंसे सबंध रखते है और दूसरे ऐतिहासिक जो जैनधर्मके प्रचारकों और अनेक आचार्यों, महास्माओं और राजा महाराजादिकोंके समय, राज्य इत्यादिसे संबंध रखते हैं; किन्तु कुछ आक्षेप ऐसे भी हैं जो दोनों विभागोंमें गर्भित हो जाते है। दोनों ही प्रकारके आक्षेपोंका निवारण करना अति आवश्यकीय है। यहाँ पर मैं पहिले प्रकारके आक्षेपोंके विषयमें कुछ न कह कर ऐतिहासिक आक्षेपोंकी ही चर्चा करूँगा और अपनी तुच्छ बुद्धिके अनुसार उनके निवारणार्थ उपाय भी बतानेका प्रयत्न करूँगा। आजकलके समयमें अन्ध-विश्वासकी परम्परा सर्वथा ही उठ गई । है। आजकल बच्चे बच्चेके मुँहमें 'क्या, 'क्यों' और 'कैसे' प्रश्न सदैव उपस्थित रहते हैं। बीसवीं शताब्दिमें सर्व साधारणके सम्मुख सब बातें सप्रमाण उपस्थित करनी पड़ेंगी । भारतवर्षका प्राचीन इतिहास बड़े
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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