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________________ १४७ नहीं; दृष्टिविचार और नेत्रस्वरूपविचार, चलने फिरनेका विचार; नीतिका विशेषोपदेश (६५श्लोकोंमें ), पापके काम और क्रोधादिके त्यागका उपदेश; धर्म करनेकी प्रेरणा; दान, शील, तप और १२ भावनाओंका संक्षिप्त कथन; पिंडस्थादिध्यानका उपदेश; ध्यानकी साधकसामग्री; जीवात्मासंबंधी प्रश्नोत्तर, मृत्युविचार और विधिपूर्वक शरीरत्यागकी प्रेरणा।" • यही सब इस ग्रंथकी संक्षिप्त विषय-सूची है। संक्षेपसे, इस प्रथमें सामान्यनीति, वैद्यक, ज्योतिष, निमित्त, शिल्प और सामुद्रकादि शास्त्रोंके कथनोंका संग्रह है। इससे पाठक खुद समझ सकते हैं कि यह ग्रंथ असलियतमें 'विवेकविलास' है या 'श्रावकाचार'। यद्यपि इस विषयसूचीसे पाठकोंको इतना अनुभव जरूर हो जायगा कि इस प्रकारके कथनोंको लिये हुए यह ग्रंथ भगवत्कुंदकुंदाचार्यका बनाया हुआ नहीं हो सकता। क्योंकि भगवत्कुदकुंद एक ऊँचे दर्जेके आत्मानुभवी साधु और संसारदेहभोगोंसे विरक्त महात्मा थे और उनके किसी भी प्रसिद्ध ग्रंथसे उनके कथनका ऐसा ढंग नहीं पाया जाता है। परन्तु फिर भी इस नाममात्र श्रावकाचारके कुछ विशेष कथनोंको, नमूनेके तौरपर, नीचे दिखलाकर और भी अधिक इस बातको स्पष्ट किये देता हूँ कि यह ग्रंथ भगवत्कुंदकुंदाचार्यका बनाया हुआ नहीं है: (१) भगवत्कुंदकुंदाचार्यके प्रथोंमे मंगलाचरणके साथ या उसके अनन्तर ही ग्रंथकी प्रतिज्ञा पाई जाती है और ग्रंथका फल तथा आशीर्वाद, यदि होता है तो वह, अन्तमें होता है। परन्तु इस ग्रंथके कथनका कुछ ढंग ही विलक्षण है। इसमें पहले तीन पद्योंमें तो मंगलाचरण किया गया; चौथे पद्यमें प्रथका फल, लक्ष्मीकी प्राप्ति
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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