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________________ इस विपयमें हमने अधिकतर यह कहा है कि शिक्षाका उद्देश्या और उसका अभिप्राय यही होना चाहिए कि वह हमको एक सभ्य, सुशिक्षित पुरुष बनाए-जिससे हम अपने कर्तव्यपालनके लिए कटिबद्ध हों और उन सर्व उत्तम गुणोसे-जिनका होना मनुष्यमें सम्भव है-विभूषित हो। शिक्षाका उद्देश्य और विद्यार्थीकी दृष्टि केवल बहुतसी बातोके संग्रह कर लेने और बहुतसी कठिन समस्या ओंके हल कर लेने तक ही नहीं होना चाहिए। सारांश, जो शिक्षा विद्यार्थीको मनुष्य न बनाए वह शिक्षा कदापि शिक्षा कहलानके योग्य नहीं है। जो कुछ हमने पढ़ा और सोचा है तदनुसार करनेकी शक्ति और कार्यतत्पर होनेका उत्साह और जीवनकी आवश्यकताओंको उत्तम रीतिसे पूर्ण करनेकी योग्यताका होना भी आवश्यक है। इस बातपर जहाँ तक जोर दिया जाए थोड़ा है। परन्तु इसके साथ ही यह भी न भूलना चाहिए कि विद्यार्थी अवस्थाका प्रारम्भिक और वास्तविक उद्देश्य यही है कि हम अपनी शक्तिको बढावें और उत्तम विचारोसे अज्ञानता और मूर्खताका परदा अपने ऊपरसे उठा दें। जो मनुष्य तुमसे यह कहें कि तुमको बड़ा विद्वान् बननेकी आवश्यकता नहीं, कोई जरूरत नहीं कि तुम कालिजों और यूनीवर्सिटियोंसे डिगरियॉ लेकर निकलनेका उद्योग करो, क्यों व्यर्थमे पुस्तकोंके कीड़े बन रहे हो ? उनकी बातको शाति और धैर्यके साथ सुन लेना चाहिए परन्तु तुममें जो बुद्धि है उससे भी तो काम लो। तुम्हें सोचना चाहिए कि वे तुमसे क्या चाहते है और तुम कहाँ तक उनकी शिक्षा मान सकते हो। ___ आजकल कुछ लोगोकी यह आदत हो गई है कि वे मानसिक और मस्तकसम्बन्धी शक्तिके बढ़ानेके विषयमे असावधान ही नहीं है
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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