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________________ जीवन व्यर्थ है। यदि उसने यह समझा कि मैं कुछ नहीं कर सकता तो वह कुछ भी न कर सकेगा; किन्तु यदि वह अपना कर्तव्यपालन करनेके लिए तत्पर हो तो उस काममें अवश्य उसे सफलता होगी। - गरज यह कि विद्यार्थीके जीवनके कार्य बड़े कठिन हैं। उससे आशा की जाती है कि वह परिश्रम और उद्योगसे विद्योपार्जन करे, अपनेमें विचारशक्ति उत्पन्न करे और मनुष्यके स्वभावसे भली भॉति परिचित हो। केवल यह ही नहीं है, किंत अपने विचारोंसे उन मानवीय गुणोको प्राप्त करे जिनका प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्यके लिए सम्भव है। बहुतसी व्यर्थ बातोंको जिनकी अल्पावस्थाके कारण इच्छा होती है एक हद्दतक रोकना पड़ता है। सभ्यता और सच्चरित्रताके नियमोंका पालन करना सबके लिए आवश्यक है, परन्तु उससे आशा की जाती है कि शिक्षाकी कृपासे उसमें उसके पूर्वजोंकी अपेक्षा अधिकतर गम्भीरता पैदा हो और वह उचित कार्य करे। विद्यार्थियो, तुमसे यह भी आशा की जाती है कि जब संसारिक कार्योंके करनेका तुमको अवसर मिले तो तुम पूर्ण स्वतंत्रता और दृढ़तासे अपने उत्तम विचारोका प्रकाश करो। जो आज विद्यार्थी है वह कलको एक पुराधिकारी होगा। यदि उसको आत्मोन्नति अथवा समाजोन्नतिकी चिन्ता न होगी तो उसमें और संकुचित हृदयवाले अशिक्षित मनुष्योंमें कुछ भी भेद न होगा। सम्पूर्ण समाज उसकी ओर टकटकी बॉधकर देख रहा है। भावी आशाएँ उसपर निर्भर है। लाखों करोड़ो जीव जो नानाप्रकारके .. असह्य दुःख सह रहे है और जिनको अपनी उन्नति करनेका कोई अवसर नहीं मिलता, वे हाथ जोडकर उससे प्रार्थना कर रहे हैं कि 'उस कर्त्तव्यका पालन कर जो एक भाग्यशाली भ्राताके सिरपर अन्य
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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