SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ पक कौसिलमें आनरेवल लाला सुखवीरसिंहजीने बालक साधुओंको रोकनेके लिए एक बिल पेश किया है। हर्षका विषय है कि अभी हाल ही इस बिलका काशीके पण्डितोने प० शिवकुमार शास्त्रीकी अध्यक्षतामे खूब दृढ़ताके साथ समर्थन किया इसके पहले काशीके निर्मले साधुओंने भी इसका अनुमोदन किया था। प्रायः सभी समझदार लोग इसके पक्षमें है। परन्तु हमको यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि कलकत्तेके कुछ जैनी भाइयोंने इसका विरोध किया है और कुछ दिन पहले जैनमित्रके सम्पादक महाशयने भी लोगोको कलक. त्तेके भाइयोंका साथ देनेके लिए उत्साहित किया था। हमारी समझमें उक्त सजन या तो इन बालक साधुओंके विकृत जीवनसे परिचित नहीं है या इन्हें यह भय हुआ है कि कहीं इससे हमारे धर्ममार्गमें कुछ क्षति न पहुंचे। वह समय चला गया; वह धर्मपूर्ण समाज अब नहीं रहा और वे भाव अब लोगोंमें नहीं रहे । जब छोटीसी उमरमें वालकोंको वैराग्य हो जाता था। और उमरमें केवलज्ञान होनेकी सभावना थी । यह समय उससे ठीक उलटा है इन बालक साधुओंके द्वारा कितने कितने अनर्थ होते हैं उन्हें देख सुनकर रोम खडे होते हैं। इस लिए इस विषयमें कुछ रुकावट हो जाय तो अच्छा ही होगा। हाँ, हम इतनी प्रार्थना कर सकते हैं कि इस कानूनका वर्ताव समझ बूझकर किया जाय इसमे सख्ती न की जाय। १० एक शिक्षितके अपने पुत्रके विपयमें विचार। हमारे पाठक जयपुरनिवासी श्रीयुक्त वावू अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. को अच्छी तरहसे जानते हैं। कुछ दिन पहले आपने अपने पुत्र चिरजीवि प्रकाशचन्द्रकी नवम वर्षगाठका उत्सव किया था। यह उत्सव बिलकुल ही नये ढगका और प्रत्येक शिक्षितके अनुकरण करने योग्य हुआ था।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy