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________________ पदावली। ४५४ जब आतम आप अमोहित व्है, अनआतमता तजि आतमध्यावै।। है तब संचित जन्म अनेकनिके अघ, ईधनको धरि ध्यान लगावै ॥ *जिनचंद मुखांबुधिवर्द्धनसों, कर प्रीति निरंतर आनंद पावै । विप खाय न काहेको प्रान तजे, गुड़ खाय सो क्यों नहिं । 1 कान विधावै ॥ १३ ॥ (१२) पदावली। अवध जनम भयो हो आदि जिनंद, नाभिराय कुल कैरवंचदाटेक ठारह फोडाफोदि प्रमान, सागरलग मग मुकत छिपान । 1. सो मग प्रगट होय अव मीत, धरमसुधाधर उदित पुनीत ॥अव०॥ रागदोष अंग मोहाताप, मिटि है सकल जगतसंताप। गति फोतियशोफित होत. मुमतिसतीउर हरपउदोत ॥० भाग भेद जुग शिवमुरदाय, तिहुँजग प्रभा रहै छवि छाय।। मानभाव विभाव फिगत, ताहि न भावत चांदनि रात ||०f भिमन्वद्रमन औषधी नह. प्रगट प्रबल सुखदायक तेह ॥ ॥ मुनियशेर नरकटिं चा ओर.चित चेत जनु जलधरमोर INDI frर आनंदसिंधु, नितपनि बढ़त तिजिनचंद टेका।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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