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________________ वृन्दावनविलास (८) अथ आरतभंजनस्तोत्र। मत्तगयन्द। * आप अमूरत हो चिनमूरत, जोग अतीत जगोत्तमधामी। 1 * याते नहीं पहुँचै थुति आपलों, पै सब जानत अंतरजामी ॥ * नौ विधि केवल लाभ लिये, तुम हो मनबांछितदायक नामी।। मोपर पीर अपार विलोकि, द्रवौ अब हे वृषभेश्वर खामी॥१॥ * संकट पावक कुंड प्रचंडतै, क्यों न निकाशत हो जिनखामी।। पंचमकाल करालकी चाल, लगी तुमहूकहँ क्या जगनामी ॥ * दास दुखी अवलोकत हो तब, काहे विलंब करो अभिरामी। आरतमंजन नामकी ओर, निहार उधारहु अंतरजामी ॥२॥ माधवी। जब सेवककी बिगरी तबही तहँ, साहब लीन तुरंत सुधारी ।। * यह बात सनातनसों चलि आवत, गावत वेद पुरान पुरारी ॥ तब कौन प्रकार पुकार सुनी, अब कारन कौन विलंब लगारी।। नहिं मोहि अलंबन है कोउ दूसरो, श्रीपतिजी सुधि लेहु हमारी ३१ (९) अथ गुरुदेवस्तुतिः। कवित्त ३१ मात्रा। संघसहित श्रीकुंदकुंद गुरु, वंदन हेत गिरौ गिरनार । वाद परयो तह संशयमतिसों, साक्षी बदी अंबिकाकार ॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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